“इसलिए जब परमेश्वर ने प्रतिज्ञा के वारिसों पर और भी साफ रीति से प्रगट करना चाहा कि उसका उद्देश्य बदल नहीं सकता, तो शपथ को बीच में लाया। ताकि दो बे-बदल बातों के द्वारा, जिनके विषय में परमेश्वर का झूठा ठहरना अनहोना है, दृढ़ता से हमारा ढाढ़स बंध जाए, जो शरण लेने को इसलिए दौड़े हैं कि उस आशा को जो सामने रखी हुई है प्राप्त करें। वह आशा हमारे प्राण के लिए ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है, और परदे के भीतर तक पहुँचता है।” इब्रानियों 6:17-19
एक शपथ का उन दोनों व्यक्तियों के लिए अत्यधिक महत्त्व होना चाहिए, जो शपथ ले रहा है और जिसे शपथ दी जा रही है। इसमें उच्चतम उपलब्ध शक्ति को एक निर्णायक साक्षी बनाया जाता है, ताकि किसी के शब्दों पर सन्देह समाप्त किया जा सके और दी गई प्रतिज्ञा की विश्वसनीयता की पुष्टि की जा सके। हालाँकि लोग बार-बार झूठ बोलने और शपथें तोड़ने के माध्यम से शपथों का मज़ाक उड़ाते हैं, फिर भी इसके द्वारा किसी के शब्दों की निष्ठा प्रकट होती है।
स्वाभाविक रूप से, शपथ केवल उस व्यक्ति के चरित्र के बराबर होती है जो इसे लेता है। इसलिए हम जानते हैं कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ भरोसेमंद हैं, और इसका यदि कोई अन्य कारण नहीं है तो केवल यह कारण ही पर्याप्त है कि ये स्वयं परमेश्वर ने दी हैं। उसे अपनी प्रतिज्ञा को शपथ से सुनिश्चित करने की आवश्यकता नहीं थी; केवल परमेश्वर द्वारा अपने लोगों को दी गई प्रतिज्ञा ही काफी है कि हम उस पर विश्वास करें। फिर भी, उसने एक और कदम आगे बढ़ाते हुए खुद की शपथ ली, क्योंकि उसके स्वयं से बड़ा और कोई है ही नहीं जिसकी वह शपथ ले सकता।
परमेश्वर हमें निराशा के संसार से आशा की वास्तविकता में लाया है, और हमारी आत्माओं का लंगर सुरक्षित और निश्चित है। यह एक अचल वस्तु से बंधा हुआ है, अर्थात परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं से और उस परमेश्वर द्वारा, जो झूठ नहीं बोल सकता, अदृश्य स्वर्गिक क्षेत्र में बांधा गया है। वास्तव में ये प्रतिज्ञाएँ इतनी सुरक्षित हैं कि इन्हें दूसरों के साथ प्रचार में साझा करना उन्हें आकर्षक बनाता है, क्योंकि हम एक ऐसे संसार में रहते हैं जो निराशा से भरा हुआ है और एक ऐसी संस्कृति में जीते हैं जो अपने असन्तोष को नकली मुस्कान, छुट्टियों और भौतिक लाभों से ढकने की कोशिश करती है।
कितना अद्भुत है कि हम ऐसे लोग हो सकते हैं जो विश्वास में दृढ़ हैं, और अपने परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के लंगर से सुरक्षित हैं। यीशु मसीह हमारे विश्वास के योग्य है और हम यह जान सकते हैं कि “परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएँ हैं, वे सब उसी में ‘हाँ’ के साथ हैं” (2 कुरिन्थियों 1:20), जिसका जीवन, मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण हमारे लिए एक ऐतिहासिक और शाश्वत विजय का कारण बने हैं।
परमेश्वर की कौन सी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करना और उन्हें अपने जीवन का आधार बनाना आपको सबसे कठिन लगता है? याद रखें कि ये प्रतिज्ञाएँ किसने दी हैं। वह वही परमेश्वर हैं जिसने निस्सन्तान और वृद्ध अब्राहम को शपथ दी थी कि उसका वंश आकाश के तारों के समान अनगिनत होगा और जिसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। वह वही परमेश्वर हैं जिसने अपने शिष्यों को शपथ दी थी कि उसे ठुकराया और मारा जाएगा, और फिर तीन दिनों के बाद वह फिर से जीवित हो जाएगा और जिसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। याद रखें कि जिन प्रतिज्ञाओं पर आपको विश्वास करने में कठिनाई हो रही है, वे प्रतिज्ञाएँ किसने दी हैं। याद रखें कि वह किस तरह का परमेश्वर है। वही आपके आत्मा का लंगर और आपके भविष्य की आशा है।
भजन 105
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: यहेजकेल 47–48; यूहन्ना 20 ◊