“यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा, ‘मैं तो मरने पर हूँ; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाई थी’… इस प्रकार यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया।” उत्पत्ति 50:24, 26
बाइबल में अनेक व्यक्तियों की मृत्यु का उल्लेख हमें अपनी मृत्यु की वास्तविकता का सामना करने के लिए प्रेरित करता है। हम सभी के दिन सीमित हैं। परमेश्वर ने हमारे प्रस्थान की तिथि हमें प्रकट नहीं की है, परन्तु भजनकार हमें बताता है कि हमारे जीवन का प्रत्येक दिन परमेश्वर की पुस्तक में पहले से ही लिखा हुआ है (भजन 139:16)। यूसुफ 110 वर्ष तक जीवित रहा—परन्तु अन्ततः, हम सभी के समान उसे भी अपनी नश्वरता को स्वीकार करना पड़ा।
यूसुफ ने अपनी मृत्यु को समझा और स्वीकार किया। कवि डिलन थॉमस के शब्दों में कहें,[1] तो उसमें “प्रकाश के बुझने पर क्रोधित होने” जैसी कोई बात नहीं थी, बल्कि जैसा हमारे प्यूरिटन पूर्वज कहते थे, यह एक “अच्छी मृत्यु” थी। वह क्या है जो हमें अच्छी मृत्यु की ओर ले जाता है? एक ठोस थियोलॉजी—एक गहरी समझ कि परमेश्वर कौन था और कौन है। अन्त समय में, यूसुफ ने अपने विश्वास को इस तरह मजबूत किया कि उसने अपने जीवन भर परमेश्वर की देखभाल और अपने लोगों के लिए उसकी प्रतिज्ञाओं को याद किया। परमेश्वर की भलाई में विश्वास के कारण वह मृत्यु का सामना बिना डरे और बिना स्वार्थ के कर सका। उसने न तो भ्रम को थामने की कोशिश की, न ही व्यर्थ की आशाओं में चिपका। बल्कि उसके शब्द संक्षिप्त थे, और उसका ध्यान उसके परिवार और परमेश्वर पर केन्द्रित था। ऐसी प्रतिक्रिया केवल तभी सम्भव है जब हमारी दृष्टि परमेश्वर के स्वभाव और उद्देश्यों से गढ़ी गई हो।
क्या हम यूसुफ की तरह यह विश्वास रखते हैं कि परमेश्वर अपने लोगों को छुड़ाएगा? क्या हमारे जीवन में इस विश्वास का प्रमाण दिखाई देता है? क्या हमने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को पीछे मुड़कर देखा है और यह पाया है कि चाहे हमने कैसी भी कठिनाई या टूटापन झेला हो, फिर भी हम भजनकार के साथ कह सकते हैं, “मेरे उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्वर है; मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्वर है” (भजन 62:7)?
हमें जीवन में जो थामे रखता है और मृत्यु के संघर्ष में जो हमें सान्त्वना देता है, वह हमारी भावनाएँ नहीं, अच्छी थियोलॉजी होती है। जब कठिन दिन आते हैं, तब हम उसी सत्य को थामते हैं जिसे हम जानते हैं—जो अटल और अपरिवर्तनीय है। यूसुफ और उसके जीवन से हम यह अद्भुत सत्य सीख सकते हैं: जिस परमेश्वर ने हमें अपने हाथों से रचा है, उसी ने हमारे जीवन के हर दिन के लिए हर एक कदम निर्धारित किया है, और वह हमारे जीवन को अपनी सम्प्रभु योजना की महान कहानी में बुन रहा है—एक ऐसी योजना जिसमें वह अपनी प्रतिज्ञाओं को अपनी प्रजा के लिए पूर्ण करता है। इस परमेश्वर पर विश्वास रखकर, हम मृत्यु का सामना भी गीत गाते हुए कर सकते हैं:
करुणा और न्याय के साथ उसने मेरा समय बुना;
दुख की ओस भी उसकी प्रेम की आभा से दमक उठी;
मैं उस हाथ को धन्य कहूँगा जिसने मेरा मार्गदर्शन किया,
मैं उस हृदय को धन्य कहूँगा जिसने मेरी योजना बनाई,
जब मैं महिमा में विराजमान रहूँगा इम्मानुएल के देश में।[2]
भजन 62
◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: 2 शमूएल 3–5; 1 तीमुथियुस 6
[1] इन कण्ट्री स्लीप, ऐण्ड अदर पोएम्स में “डू नॉट गो जेण्टल इनटू दैट गुड नाईट” (डेण्ट, 1952)
[2] ऐनी आर. कज़न, “द सैण्ड्स ऑफ टाईम आर सिंकिंग” (1857).