16 अक्तूबर : अपने मुँह की चौकसी करो

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16 अक्तूबर : अपने मुँह की चौकसी करो
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“जो अपने मुँह की चौकसी करता है, वह अपने प्राण की रक्षा करता है, परन्तु जो गाल बजाता है उसका विनाश हो जाता है।” नीतिवचन 13:3

प्युरिटन थॉमस ब्रूक्स ने एक बार लिखा था, “हम धातुओं को उनकी छनकार से पहचानते हैं, और लोगों को उनके बोलने से।”[1]

शब्द कभी तटस्थ नहीं होते। हमारे द्वारा बोले जाने वाले प्रत्येक शब्द को परमेश्वर सुनता है—हमारे जीवन उनके सामने उजागर हैं, और बाइबल में यह अद्वितीय क्षमता है कि वह हमारे दिलों के गहरे कोनों तक पहुँचकर उसे भी परख सकती है जिसे हम खुद से और दूसरों से छिपाना चाहते हैं।

जो शब्द लोगों द्वारा हमसे बोले जाते हैं, उनकी छाप हमारी स्मृति में छप जाती है। शायद हम एक बच्चे द्वारा बोले गए पहले शब्दों की खुशी पर विचार करते हैं या फिर एक दोस्त के दर्दनाक शब्दों की कड़वाहट को महसूस करते हैं। बचपन से ही हम यह सीख जाते हैं कि हानि पहुँचाने के लिए या खुशी दिलाने के लिए शब्दों का उपयोग कैसे किया जाता है। राजा सुलैमान ने सही कहा था: “जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं” (नीतिवचन 18:21)।

हम सभी पाप में पतन के शिकार हैं। इसलिए चोट पहुँचाने वाले शब्द बड़ी आसानी से हमारे मुँह से निकल आते हैं। वे एक तलवार के अनियन्त्रित प्रहार के समान बड़े घातक हो सकते हैं और जब हम सुनने से पहले उत्तर दे देते हैं, तो हमारे शब्द बड़े लापरवाही से भरे हो सकते हैं। कभी-कभी हम बस जरूरत से ज्यादा बोल जाते हैं; और परिणामस्वरूप हम ऐसी बातें कह देते हैं जो हमें अपने तक ही रखनी चाहिए थीं। शब्द किसी पड़ोसी को नष्ट कर सकते हैं, किसी मित्र की भावनाओं को आहत कर सकते हैं, और हमारे सम्बन्धों में आग लगा सकते हैं। एक गलत शब्द किसी के चरित्र को बिगाड़ सकता है, किसी की प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकता है, या किसी और के जीवन की उपयोगिता को लम्बे समय तक नुकसान पहुँचा सकता है। हम यह सब जानते हैं, फिर भी अपने मुँह पर नियन्त्रण रखना हमारे लिए कितना कठिन होता है। कितनी बार हम तब मुँह बन्द करते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है—जब हम पहले ही उसे जरूरत से ज्यादा खोल चुके होते हैं और खुद को या दूसरों को नुकसान पहुँचा चुके होते हैं।

यदि हम सचमुच अपनी जीभ की असफलताओं के बारे में ईमानदार होते, तो हम एक-दूसरे के प्रति बहुत अधिक सहनशील होते। और परमेश्वर की मदद से हम अपने मुँह की रक्षा करने और विनाशकारी शब्दों को हटाने में और अधिक गम्भीर होते। यह हमारे दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों के लिए अनुग्रह का कितना सुन्दर प्रदर्शन होता! यीशु ही एकमात्र सिद्ध व्यक्ति है; उसने अपने शब्दों से कभी पाप नहीं किया (याकूब 3:2)। यदि हम इस पहलू में उसके जैसे बनने का प्रयास करें, तो शायद लोग इस बात पर चकित होंगे कि उसके होंठों से कैसे करुणा, कोमलता और दयालुता से भरे शब्द निकलते थे (लूका 4:22)।

यद्यपि आपके शब्द और कार्य स्वयं में स्वर्ग के द्वार पर आपके लिए कुछ प्राप्त नहीं कर सकते, फिर भी ये इस बात का प्रमाण हैं कि प्रभु यीशु मसीह में आपके विश्वास की घोषणा सच्ची है। अब ज़रा सोचिए, कैसा लगेगा जब आप इन शब्दों को गम्भीरता से लेना आरम्भ करेंगे: “हर एक मनुष्य सुनने के लिए तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो” (याकूब 1:19)?

  याकूब 3:2-12

◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: 1 शमूएल 10–12; इफिसियों 5:17-33


[1] द कम्पलीट वर्क्स ऑफ थॉमस ब्रूक्स  में “दि अनसर्चेबल रिचेस ऑफ क्राईस्ट,” सम्पादक ऐल्क्ज़ेण्डर बालोख़ ग्रोज़ार्ट (जेम्स निकोल, 1866), खण्ड 3, पृ. 178.

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