“प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।” याकूब 1:14-15
हर पाप भीतर से ही जन्म लेता है।
हम परमेश्वर के स्वरूप में रचे गए प्राणी हैं, और हमारे भीतर अनेक प्रकार की इच्छाएँ हैं—जो स्वयं में बुरी नहीं हैं। परन्तु पतन के कारण हमारी हर लालसा में बुराई की अद्भुत सम्भावना छिपी है। परमेश्वर द्वारा दी गई इच्छाएँ भी विकृत होकर दुष्टता के लिए उपयोग की जा सकती हैं।
हम बुराई की अपनी प्रवृत्ति के दोष को शैतान, अपने मित्रों, वंशानुगत प्रवृत्तियों, या वातावरण पर डालने में माहिर हैं। परन्तु पवित्रशास्त्र कहता है कि हम अपनी ही लालसाओं द्वारा प्रलोभन में पड़ते हैं। परमेश्वर की अवज्ञा करने और विकृत या दुष्ट इच्छाओं को पूरा करने की लालसा हमारे भीतर से ही उत्पन्न होती है।
शैतान हमें लुभा सकता है, परन्तु परमेश्वर की अवज्ञा का निर्णय करना हमारा कार्य होता है। प्रभु यीशु ने यह अत्यन्त स्पष्ट रूप से कहा: “जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” (मरकुस 7:20) हर प्रलोभन हमारे सामने तब आता है, जब हम अपनी ही लालसा से खिंच कर बहकाए जाते हैं। और जब हम प्रलोभन के सामने झुक जाते हैं, तो वह अन्त में मृत्यु को जन्म देता है।
प्रलोभन की आकर्षक शक्ति मछलियों की मूर्खता में स्पष्ट दिखती है। वे चारा देखती हैं—जो चमकता है, लुभाता है—और वे उस पर झपट पड़ती हैं . . . और काँटे में फँस जाती हैं! यदि चारा पर्याप्त आकर्षक हो, तो मछली उस काँटे को अनदेखा नहीं कर सकती।
क्या हम वास्तव में मछलियों से अधिक समझदार हैं? जब चारा मनभावन दिखता है, तो हम स्वयं को समझाने लगते हैं कि शायद उसमें काँटा नहीं है। परन्तु काँटा होता है। “पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।” पाप का मार्ग न्याय की ओर ले जाता है, और यह मार्ग हमारे जीवन पर ऐसे चिह्न छोड़ जाता है, जिन्हें समय कभी नहीं मिटा सकता—हालाँकि अपनी दया में परमेश्वर उन अनुभवों का भी छुटकारा कर सकता है।
जब तक हम इस पृथ्वी पर जीवित हैं, हम कभी प्रलोभन से मुक्त नहीं होंगे। उत्पत्ति में, परमेश्वर ने कैन को चेतावनी दी, “पाप द्वार पर छिपा रहता है; और उसकी लालसा तेरी ओर होगी, और तुझे उस पर प्रभुता करनी है।” (उत्पत्ति 4:7)। यह एक अत्यन्त सटीक चित्रण है: पाप सदा हमारे भीतर छिपा रहता है, और हम पर झपटने के अवसर की प्रतीक्षा करता रहता है।
इसलिए संकल्प लें कि आप पाप के हर बढ़ते कदम का प्रतिकार करेंगे। यह प्रतिदिन की लड़ाई है। आज यह ठान लें कि ऐसी किसी भी वस्तु के लिए आप अपनी आँखों को भटकने नहीं देंगे, मन को विचार नहीं करने देंगे, या हृदय को आकर्षित नहीं होने देंगे, जो आपको मसीह से दूर करती है। कैसे? अपनी इच्छाओं से प्रश्न करना सीखें: “क्या यह एक ईश्वरीय इच्छा है जिसे मुझे पोषित करना चाहिए, या एक पापपूर्ण लालसा है जिससे मुझे लड़ना चाहिए?” और परमेश्वर के पूरे अस्त्र-शस्त्र पहनना सीखें: “विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिससे तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको” (इफिसियों 6:16)। क्योंकि अपने उद्धारकर्ता और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास के द्वारा ही आपको स्थिर खड़े रहने का सामर्थ्य मिलता है—और जब आप गिरते हैं, तब क्षमा भी मिलती है।
1 कुरिन्थियों 10:1-13
◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: एस्तेर 9–10; लूका 13:22-35