6 जून : अपने आप से ईमानदार रहें

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6 जून : अपने आप से ईमानदार रहें
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क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।” भजन 32:2

दोस्तोएव्स्की के द ब्रदर्स कारमाज़ोव में, एक पात्र दूसरे को यह सलाह देता है: “सबसे बढ़कर, अपने आप से झूठ मत बोलो। जो व्यक्ति अपने आप से झूठ बोलता है और अपने ही झूठ को मानता है, वह इस स्थिति में पहुँच जाता है कि वह न तो अपने भीतर और न ही अपने आस-पास किसी भी सत्य को पहचान पाता है, और इस प्रकार वह न केवल अपने प्रति बल्कि दूसरों के प्रति भी अनादर करने लगता है।”[1] लगभग तीन सहस्राब्दी पहले, दाऊद ने भी इस बात का वर्णन किया था कि यदि हम अपने वास्तविक स्वभाव को लेकर स्वयं को धोखा देते हैं, तो उसके क्या प्रभाव हो सकते हैं।

सच्ची खुशी की खोज के लिए ईमानदारी अत्यन्त आवश्यक है। जो लोग वास्तव में आनन्द और सन्तोष से भरे होते हैं, वे न तो स्वयं से और न ही दूसरों से झूठ बोलते हैं। हम खुद को धोखा देकर वास्तविक खुशी का अनुभव नहीं कर सकते; छल और आनन्द एक साथ नहीं रह सकते।

बाइबल हमसे अपेक्षा करती है कि हम अपने बारे में उतने ही ईमानदार हों, जितनी वह स्वयं हमारे विषय में ईमानदार है। यह हमारे हृदय और मन पर एक खोजी प्रकाश डालती है, जिससे मानव जीवन की वास्तविक स्थिति प्रकट होती है। हमें बताया गया है कि हम अधर्म में जीते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि हमारे भीतर स्वाभाविक रूप से बुराई की ओर झुकाव होता है और हमारा स्वभाव पाप से भ्रष्ट हो गया है। हम अपराधी हैं, ऐसे स्थानों पर जाते हैं जहाँ हमें नहीं जाना चाहिए। हम पापी हैं, जो न केवल परमेश्वर के द्वारा स्थापित मानकों पर, बल्कि अपने ही बनाए हुए मानकों पर भी खरे नहीं उतरते।

इस पद का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि दाऊद अपने वचन का आरम्भ “धन्य” या “आनन्दित” शब्द से करता है, लेकिन इसके तुरन्त बाद वह हमारे अधर्म और स्वयं को और परमेश्वर को धोखा देने की हमारी प्रवृत्ति जैसी कठोर सच्चाइयों का उल्लेख करता है। लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि जिस समस्या का वह सामना कर रहा है, उसके समाधान के रूप में परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया उद्धार कहीं अधिक सामर्थी है।

ध्यान दें कि दाऊद यह नहीं कहता, क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म को यहोवा अधर्म ही नहीं मानता। बल्कि वह कहता है, “क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले।” क्योंकि परमेश्वर पवित्र है, इसलिए उसे पाप का हिसाब रखना ही होगा—लेकिन वह उसे किसी और के ऊपर डालता है। वह उसे अपने पुत्र, हमारे प्रभु यीशु मसीह पर डालता है। दाऊद के इन शब्दों में हमें विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने की अद्‌भुत शिक्षा मिलती है, जिसे हम पहली बार अब्राहम के साथ परमेश्वर के सम्बन्ध में देखते हैं, जब अब्राहम ने “यहोवा पर विश्‍वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना” (उत्पत्ति 15:6)। जिस क्षण हम वास्तव में विश्वास कर लेते हैं कि हमारे पापों का लेखा हमारे उद्धारकर्ता पर डाला गया है, उस क्षण हम धन्य हो जाते हैं; हम पहले से कहीं अधिक आनन्दित हो जाते हैं।

इसलिए आशीष प्राप्त करने का मार्ग ईमानदारी से आरम्भ होता है। हम ऐसे अच्छे लोग नहीं हैं जो कभी-कभार गलतियाँ कर बैठते हैं। हम अद्‌भुत व्यक्ति नहीं हैं, जिनमें बस कुछ कमियाँ हैं, जिनका दोष हम अपने पालन-पोषण, परिवेश या पिछली रात की कम नींद पर डाल सकते हैं। हम पापी हैं, जिनके हृदय कपटी हैं, जो परमेश्वर की महिमामय अपेक्षाओं से बहुत पीछे रह जाते हैं और जो स्वभाव से केवल क्रोध के अधिकारी हैं (यिर्मयाह 17:9; रोमियों 3:23; इफिसियों 2:1-3)। अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति ईमानदार बनें। अपने पापों को स्पष्ट रूप से स्वीकार करें, कि आपने किस प्रकार प्रभु के विरुद्ध पाप किया है। तब आप इस संसार की सबसे आनन्ददायक खुशखबरी को अपनाने के लिए तैयार होंगे: “हमारे पाप भले ही अनेक हों, पर उसकी दया और भी अधिक है।”[2]

  भजन 38

◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: यिर्मयाह 3–5; मत्ती 21:1-22


[1] फ्योडोर दोस्तोएव्स्की, द ब्रदर्स कारमाज़ोव: ए नोवल इन फोर पार्ट्स विद एपिलोग, अनुवादक रिचर्ड पेविएर और लारिसा वोलोखोनस्की (1990; पुनः मुद्रित फर्रार, स्ट्रॉस, ऐण्ड गिरोक्स, 2002), पृ. 44.

[2] मैट पापा ऐण्ड मैट बोस्वल, “हिज़ मर्सी इज़ मोर” (2016).

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