5 जून : परीक्षाओं और संकटों में आराधना करना

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5 जून : परीक्षाओं और संकटों में आराधना करना
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“जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है।” उत्पत्ति 39:2-3

यदि यूसुफ के पास केवल उसका प्रसिद्ध रंग-बिरंगा बागा ही होता, तो जब उसके भाइयों ने उसे उससे छीन लिया था और उसे गुलामी में बेच दिया था, तो वह पूरी तरह से बर्बाद हो गया होता। लेकिन उस बागे को पहनने वाले व्यक्ति के अन्दर एक सशक्त चरित्र था—और जब यूसुफ ने अपना बागा खो दिया, तब भी उसने अपना चरित्र नहीं खोया। इसके बजाय, वह पोतीपर के घर में एक दास के रूप में और अधिक ढलता और तराशा जाता रहा। इस कठिन परीक्षा में, परमेश्वर ने यूसुफ के जीवन पर आशीष और अनुग्रह उण्डेला।

यह समझ में आता कि यदि यूसुफ खुद को मिस्र के एक घर में गुलाम के रूप में पाकर पूरी तरह से अकेलेपन में चला जाता, अपने आस-पास के संसार से अलग-थलग हो जाता, मिस्र की मूर्तिपूजा का विरोध करता और पोतीपर के अधिकार से घृणा करता। लेकिन इस दृष्टिकोण से उसे गवाही देने या परमेश्वर के कार्य को दिखाने का कोई अवसर नहीं मिलता। इसके बजाय, यूसुफ ने यह निश्चय किया कि वह पोतीपर का सबसे अच्छा सेवक बनेगा, क्योंकि वह जानता था कि अन्ततः वह परमेश्वर की सेवा कर रहा है।

हालाँकि यूसुफ परमेश्वर की भलाई के कारण समृद्ध हुआ, फिर भी वह गुलाम ही रहा। उसका दिन-प्रतिदिन का जीवन कठिन परिश्रम से भरा था—जिससे हममें से अधिकांश लोग परिचित हैं! लेकिन यदि हम सबसे बुरे या सबसे उबाऊ हालात में भी समृद्ध होना चाहते हैं, तो हमें यह सीखना होगा कि जीवन के साधारण अनुभवों में भी, चाहे वे कुछ भी हों, हमें परमेश्वर के आशीर्वाद को देखना है।

क्योंकि यूसुफ अपने संघर्षों में परमेश्वर पर भरोसा कर सका, इसलिए हमें बताया गया है कि पोतीपर ने देखा कि यहोवा यूसुफ के साथ था और उसने उसे सफलता दी थी। यूसुफ को पोतीपर को यह बताने की आवश्यकता नहीं पड़ी कि उसके जीवन में परमेश्वर की विशेष कृपा है। जब परमेश्वर की आशीष किसी के जीवन पर होती है, तो वह स्वतः ही प्रकट हो जाती है—और कभी-कभी, जैसा कि हम पोतीपर के मामले में देखते हैं, यहाँ तक कि अविश्वासी भी इसे अनदेखा नहीं कर सकते।

हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि हम अपने जीवन के हर कार्य, हर क्षण और हर निर्णय को परमेश्वर की महिमा और स्तुति के अवसर के रूप में देखें। हम जहाँ कहीं भी हों, हम (जैसा कि पौलुस ने उन लोगों से कहा, जो यूसुफ की तरह परमेश्वर के लोग होते हुए भी गुलामी में थे) “जो कुछ [भी करें] तन मन से [करें], यह समझकर कि मनुष्यों के लिए नहीं परन्तु प्रभु के लिए करते [हैं]; क्योंकि [हम जानते हैं कि हमें] इसके बदले प्रभु से मीरास मिलेगी; [हम] प्रभु मसीह की सेवा करते [हैं]” (कुलुस्सियों 3:23-24)।

केवल जब हम यह समझ जाते हैं कि हमें परमेश्वर की महिमा के लिए बनाया गया है, तब हम जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों को आराधना के कार्यों में बदल सकते हैं। बाइबल कहती है कि हमारी ज़िम्मेदारियाँ ऐसे अवसर हैं जिनसे हमारी परमेश्वर पर निर्भरता प्रकट होती है और उसकी आशिषों के प्रमाण मिलते हैं। चाहे हम किसी कम्पनी के मालिक हों या सड़क साफ करने वाले हों, शेयरों का व्यापार कर रहे हों, घर बना रहे हों या बच्चों की देखभाल कर रहे हों, हम विनम्र भी होंगे और ऊपर भी उठाए जाएँगे, जब हम यह प्रार्थना करेंगे:

हे मेरे परमेश्वर और राजा,

मुझे हर परिस्थिति में तुझे देखने दे,

और जो कुछ भी मैं करूँ,

उसे तेरे लिए करूँ।[1]

उत्पत्ति 39 पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: यिर्मयाह 1–2; मत्ती 20:17-34 ◊


[1] जॉर्ज हर्बर्ट, “दि एलिक्सिर,” दि इंगलिश पोएम्स ऑफ जॉर्ज हर्बर्ट, सम्पादक हेलेन विलकोक्स (केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2007), पृ. 640.

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