31 मई : हम कभी आगे नहीं बढ़ते

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31 मई : हम कभी आगे नहीं बढ़ते
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“तुम जो पहले निकाले हुए थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे; उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे। यदि तुम विश्‍वास की नींव पर दृढ़ बने रहो और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया, और जिसका मैं, पौलुस, सेवक बना।” कुलुस्सियों 1:21-23

21वीं सदी के पश्चिमी समाज के अधिकांश लोग यह कहेंगे कि कुल मिलाकर सब मनुष्य अच्छे हैं। हालाँकि, एक दिन का समाचार बहुत जल्दी इस धारणा को चुनौती दे देगा। और हमारे अपने जीवन में एक दिन भी इस दावे को कमजोर करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। क्योंकि यदि हम पूरी तरह से ईमानदार हों, तो हमें स्वीकार करना होगा कि हमारे अपने दिल नियन्त्रित नहीं हैं—और इस समस्या के लिए जो लोकप्रिय समाधान हैं, जैसे कि उच्च शिक्षा या सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव, कभी भी परिस्थितियों को ठीक नहीं कर सकते। मनुष्यजाति लगातार एक अव्यवस्थित स्थिति में बनी हुई है।

जब हम बाइबल की ओर मुड़ते हैं, तो हम अपने बारे में एक कड़वा सच पाते हैं: क्या कारण है कि हम दूसरों से अलग-थलग महसूस करते हैं—क्या कारण है कि मैं कभी-कभी खुद से अलग-थलग महसूस करता हूँ—वह कारण यह है कि हम परमेश्वर से अलग-थलग हैं। हमारा क्षैतिज अलगाव हमारे गहरे और अधिक गम्भीर ऊर्ध्वाधर अलगाव का संकेत है। परमेश्वर ने हमें इसलिए बनाया था कि हम उसके साथ एक सम्बन्ध में रह सकें, फिर भी हमारे मन उससे दूर हो चुके हैं। हम उसके बारे में नहीं सोचते। हम उससे प्यार नहीं करते। हम उसे खोजते भी नहीं हैं।

फिर भी, एक अच्छी खबर है। पहले हम अपना जीवन बर्बाद कर रहे थे, लेकिन अब मसीह के अनुयायी बनकर हम नवीनीकरण पा चुके हैं। हम अलग-थलग थे, लेकिन अब हमारा पुनर्मिलन हो चुका है। हम अन्धेरे में जी रहे थे, लेकिन अब हम रोशनी में लाए गए हैं। हम फँसे हुए थे, और अब हम स्वतन्त्र किए गए हैं। हम मृत थे, और अब हम मसीह के साथ जीवित किए गए हैं। यह उन लोगों का अनुभव है जो परमेश्वर को वैसे जान गए हैं जैसे उसने अपने वचन के माध्यम से स्वयं को प्रकट किया है।

यह परिवर्तन केवल जीवन को नया रूप देने का निर्णय लेने का परिणाम नहीं है। किसी न किसी समय, हममें से अधिकांश लोगों ने सोचा होगा, “मैं एक नया पन्ना पलट रहा हूँ और बदलाव कर रहा हूँ। इस साल मैं पिछले साल से ज्यादा आभारी रहने वाला हूँ।” और यह अच्छा है! इसमें कोई बुराई नहीं है। हमारे मित्र और परिवार शायद इसे सुनकर खुश होंगे। लेकिन सिर्फ यह ही एक मसीही जीवन का अन्तिम लक्ष्य नहीं है। बल्कि मसीही जीवन में परिवर्तन परमेश्वर के उद्धारक अनुग्रह द्वारा प्रेरित और आरम्भ किया जाता है। हम उसी तरह आगे बढ़ते हैं, जैसे हमने आरम्भ किया था: अनुग्रह से।

सुसमाचार की खुशखबरी यह है कि यीशु नासरी हमारे लिए आया ताकि हमारे अलगाव को समाप्त करे। केवल उसने ही वह किया है जो हमें सबसे ज्यादा चाहिए था, लेकिन वह हम अपने लिए नहीं कर सकते थे। इसलिए हमें दिया गया बुलावा बहुत सरल है: “विश्‍वास की नींव पर दृढ़ बने रहो और उस सुसमाचार . . . को . . . न छोड़ो।” हमें कभी भी मसीह के क्रूस पर मरने, जी उठने, और राज्य करने के सरल सुसमाचार से आगे बढ़ने की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हमें ऐसा करने का साहस भी नहीं करना चाहिए। और फिर भी, यह हमारे लिए कितना आसान है कि हम इन सच्चाइयों के प्रति ठण्डे पड़ जाते हैं; परिचितता यदि तिरस्कार न पैदा करे तो कम से कम आत्म-सन्तुष्टि का कारण अवश्य बन सकती है। इसलिए अपने दिल को ईमानदारी से जांचें। अपने पाप को स्वीकार करें। और एक बार फिर सुसमाचार की ओर लौटें, विस्मय में “कि तू, मेरे परमेश्वर, मेरे लिए मरने के लिए आया।”[1]

भजन 32

◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: 2 राजाओं 24–25; मत्ती 17

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