30 अगस्त : सही समय पर की गई प्रार्थना

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30 अगस्त : सही समय पर की गई प्रार्थना
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“‘अब हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएँ’ . . . जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्‍वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।” प्रेरितों 4:29, 31

जब हमें लगता है कि हमारा समाज अधिक दृढ़ता से सुसमाचार से मुँह मोड़ रहा है और पवित्रशास्त्र के दावों का बड़ी आक्रामकता से विरोध कर रहा है, तो स्वाभाविक सवाल यह होता है: हमें क्या करना चाहिए? हमारी प्रतिक्रिया यह नहीं होनी चाहिए कि हमें क्या आरामदायक लगता है, बल्कि यह होनी चाहिए कि बाइबल क्या कहती है।

प्रारम्भिक कलीसिया सामाजिक उथल-पुथल से अपरिचित नहीं थी। यह जानते हुए कि आशा और उद्धार मसीह के मृत्यु और पुनरुत्थान में ही पाया जाता है, पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन निडर होकर प्रचार किया, बस कुछ सप्ताह बाद ही जब उसने यीशु को जानने और उनका अनुयायी होने से इनकार किया था (प्रेरितों 2:1-41)। पतरस और अन्य प्रेरितों का साहसी प्रचार कलीसिया के त्वरित विकास का कारण बना—लेकिन साथ ही यह विश्वासियों के लिए हिंसा और उत्पीड़न का कारण भी बना (पद 1-22)।

तो फिर हमें यह पढ़ते हुए कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उन्होंने परमेश्वर के सामने अपनी आवाज उठाई। उन्हें जिस विरोध का सामना करना पड़ रहा था, वे उसे जानते थे और उन्होंने ज्ञान के साथ, बाइबल के तरीके से, और साहस से प्रार्थना की।

“अब हे प्रभु . . .” यदि हमसे यह प्रार्थना पूरी करने के लिए कहा जाए, तो हम शायद परमेश्वर से धमकियों को दूर करने, विरोध को दबाने, या उत्पीड़न से बचाने के लिए कहेंगे। हालाँकि प्रारम्भिक विश्वासियों की प्रार्थना यह नहीं थी। इसके बजाय, उन्होंने यह प्रार्थना की कि वे “बड़े हियाव से” सुसमाचार का प्रचार करें।

उनकी प्रार्थना आज भी प्रासंगिक है। निस्सन्देह, यीशु मसीह की कलीसिया की इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है: आत्मा से प्रेरित और मसीह पर केन्द्रित साहस। हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जिसे विभिन्न विचारों और तनावों का मिश्रण आकार दे रहा है। इसी सन्दर्भ में परमेश्वर ने हमें यह कहने के लिए बुलाया है: “मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिए, पहले तो यहूदी फिर यूनानी के लिए, उद्धार के निमित्त परमेश्‍वर की सामर्थ्य है” (रोमियों 1:16)।

जब हम ऐसा करते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि सुसमाचार के केन्द्र में क्रूस है। यदि हम सचमुच साहस के साथ ये शब्द बोलना चाहते हैं, तो हम यशायाह के शब्दों में यह घोषणा करेंगे कि क्रूस पर यीशु “हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ” (यशायाह 53:5)। जैसा कि रिको टाइस ने बताया है, इसका मतलब यह है कि हमें दर्द की सीमा को पार करने और विरोध करने वाले लोगों की शत्रुता का जोखिम उठाने के लिए साहसी होना होगा, ताकि हम उन लोगों के बीच भूख पा सकें जिनमें परमेश्वर पहले से काम कर रहा है।[1]

सम्पूर्ण सुसमाचार सम्पूर्ण कलीसिया को सम्पूर्ण संसार तक पहुँचाने के लिए दिया गया है। चाहे आप संगीतकार, अभियन्ता, किसान या फार्मासिस्ट हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; परमेश्वर का आदेश हममें से प्रत्येक के लिए यह है कि हम उसके वचन और सुसमाचार के रहस्य को बोलें।

तो क्या आप साहस के साथ साहस के लिए प्रार्थना करने के लिए तैयार हैं? आसान या आरामदायक या स्वस्थ या प्रशंसा पाने वाले जीवन के लिए नहीं, बल्कि एक साक्षी के जीवन के लिए? क्या आप प्रारम्भिक कलीसिया की प्रार्थना को प्रतिदिन अपनी प्रार्थना बनाएँगे, यह माँगते हुए कि आप परमेश्वर के आत्मा से भरपूर और साहसी हों, ताकि आप किसी भी क़ीमत पर सुसमाचार को ऐसे संसार के साथ साझा कर सकें, जो सत्य के लिए तरस रहा है?

  प्रेरितों 4:1-22

पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: भजन 129–131; 2 कुरिन्थियों 9 ◊


[1] ऑनेस्ट इवेंजेलिज़म (द गुड बुक कम्पनी, 2015), p 15.

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