
“उसे देख कर प्रभु को तरस आया, और उससे कहा, ‘मत रो।’ तब उसने पास आकर अर्थी को छूआ, और उठाने वाले ठहर गए। तब उसने कहा, ‘हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!’” लूका 7:13-14
परमेश्वर के राज्य का आगमन संसार की शक्तियों और अधिकारियों पर किसी शानदार या नाटकीय विजय से नहीं हुआ, बल्कि उससे कहीं अधिक रूपान्तरणकारी कारक अर्थात इसके राजा की महान करुणा के द्वारा हुआ।
यीशु के जीवन-वृतान्तों में सुसमाचार लेखक हमें बार-बार ऐसे प्रसंगों से परिचित कराते हैं, जो मसीह की अनुपम करुणा को दर्शाते हैं। इन घटनाओं में मसीह का सामर्थ्य उस समय प्रकट होता है, जब वह अपनी करुणा प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिए, अपने सुसमाचार के सातवें अध्याय में लूका एक शोकाकुल विधवा के प्रति यीशु की सहानुभूति को दर्शाता है—एक ऐसी प्रतिक्रिया जो उसकी महानता के बारे में किसी भी सन्देह को दूर कर देती है।
लूका के वृतान्त के इस भाग में वर्णित स्त्री सचमुच संकट में थी। उसका पति पहले ही मर चुका था, और अब उसका पुत्र भी चल बसा था। प्राचीन मध्य-पूर्वी समाज में इसका अर्थ था कि वह किसी भी प्रकार की सुरक्षा या आजीविका के सहारे से वंचित हो गई थी। अब वह दुख, अकेलेपन, और अस्थिरता से भरे जीवन का और साथ ही अपने वंश के अन्त का भी सामना कर रही थी।
लेकिन फिर यीशु इस स्त्री के जीवन की चरम परिस्थिति में आया और “उसे देख कर प्रभु को तरस आया, और उससे कहा, ‘मत रो।’”
इस कोमल चरवाहे के हृदय में करुणा जगाने के लिए केवल इतना ही काफ़ी था कि उसने इस शोक-सन्तप्त स्त्री को देखा। यहाँ पर प्रयुक्त शब्द “तरस” शाब्दिक रूप से दर्शाता है कि “उसकी अन्तड़ियाँ हिल उठीं”—हमारे शब्दों में कहें तो “उसका पेट मरोड़ खा उठा।” जब यीशु—जिसके द्वारा और जिसके लिए सब कुछ रचा गया—इस टूटे हुए संसार में दुख और शोक को देखता है, तो वह इसे गहराई से अनुभव करता है। वह एक ऐसा राजा है, जो अपनी प्रजा की दिल से चिन्ता करता है।
और भी अधिक सुन्दर बात यह है कि यीशु के पास इस विधवा की आवश्यकता को पूरा करने का सामर्थ्य था और उसने वह किया जो केवल वही कर सकता था: मरे हुए को जीवन देना। उसने केवल एक मरे हुए पुत्र को उसकी शोकग्रस्त माँ को लौटा कर उसका दुख ही दूर नहीं किया, बल्कि उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण यह था कि यीशु ने भीड़ (और हम सब) के सामने स्वयं को अपनी सम्पूर्ण शक्ति, दयालुता, और अधिकार के साथ—यहाँ तक कि मृत्यु पर भी अधिकार के साथ प्रकट किया।
ऐसे दृश्य हमें दिखाते हैं कि यीशु केवल बीमारी और मृत्यु—जो मानवजाति के सबसे बड़े शत्रु हैं—के बारे में केवल टिप्पणी ही नहीं करता, या केवल उनके लिए रोता ही नहीं है, बल्कि वह उन्हें पराजित भी करता है। वह शोकाकुलों की पुकार को सुनता है और उन्हें सान्त्वना देता है—केवल सांसारिक और अस्थाई रूप में नहीं, बल्कि एक अन्तिम, परिपूर्ण और अनन्त तरीके से, जब वह विश्वास करने वाले सब लोगों को स्वयं को उद्धार के साधन के रूप में प्रदान करता है।
आपका राजा न केवल अनन्त रूप से सामर्थी है; वह अनन्त रूप से करुणामय भी है। और उसमें मौजूद ये दोनों गुण पर्याप्त हैं कि वह आपको इस संसार के हर दुख और शोक से पार ले जाए—जब तक कि आप उसके सामने खड़े न हो जाएँ, और वह आपकी आँखों से हर आँसू पोंछ न दे।
लूका 7:1-17
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: यहेजकेल 22–23; यूहन्ना 13:1-20 ◊