
“मैं ये बातें तुम्हें इसलिए लिखता हूँ कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धर्मी यीशु मसीह।” 1 यूहन्ना 2:1
मसीही विश्वास क्षमा के सन्देश पर आधारित है। अन्य धर्म नैतिकता सिखा सकते हैं, वे हमें ऐसी विधियाँ दे सकते हैं जो हमारे जीवन को व्यवस्थित करने या हमें एक अच्छा इंसान महसूस कराने में मदद करें। परन्तु मसीही विश्वास उन लोगों के लिए है जो अयोग्य, खोए हुए, संघर्षरत और पापी हैं। यह उन लोगों के लिए है, जिन्हें यह सुनने की आवश्यकता है कि वे क्षमा प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात, यह सभी के लिए है।
सुसमाचार का केन्द्र-बिन्दु यह नहीं है कि हमें क्या करना चाहिए, बल्कि यह कि परमेश्वर ने हमारे लिए क्या किया है। परमेश्वर की दया ही है जो हममें क्षमा पाने की इच्छा उत्पन्न करती है—और केवल जब हम यीशु में विश्वास रखते हैं, तभी हमें पूर्ण रूप से क्षमा प्राप्त होती है। जब हम पश्चाताप और विश्वास के साथ उसकी ओर मुड़ते हैं, तब हम पीछे मुड़कर यह कह सकते हैं कि हम पाप के दण्ड से बचा लिए गए हैं। जो कुछ हमारे विरुद्ध था, जो कुछ हमें परमेश्वर को जानने और उसकी प्रेम और भलाई को अनुभव करने से रोक रहा था—वह सारा दण्ड जो हमें मिलना चाहिए था—वह सब प्रभु यीशु मसीह के क्रूस पर किए गए उद्धारक कार्य के द्वारा मिटा दिया गया है।
विश्वासी होने के नाते हम आनन्दित हो सकते हैं—और होना भी चाहिए—कि अब पाप हम पर शासन नहीं करता। फिर भी, वास्तविकता यह है कि इस सांसारिक जीवन में हम अभी भी पाप करते हैं। हम अभी भी परमेश्वर के मापदण्ड तक पहुँचने में असफल होते हैं। और जब ऐसा होता है, तो शत्रु हमारे कानों में फुसफुसाता है, “क्या तू वास्तव में उद्धार पाया है? क्या परमेश्वर तुझे इस बार भी क्षमा करेगा?” इस पर हमारा उत्तर होना चाहिए, “हाँ, मैं उद्धार पाया हुआ हूँ; और हाँ, वह मुझे क्षमा करेगा, क्योंकि जिसने मेरे लिए प्राण दिए, वह इस समय भी मेरे लिए परमेश्वर के सामने वकालत कर रहा है।”
परमेश्वर से क्षमा पाना हमें पाप करने की स्वतन्त्रता नहीं देता। वास्तव में, प्रेरित यूहन्ना ने लिखा कि “तुम पाप न करो” (1 यूहन्ना 2:1)। जब हम पाप करते हैं, तो परमेश्वर में जो आनन्द हमने पाया है, वह धुंधला पड़ने लगता है। वह हमारा स्वर्गिक पिता बना रहता है, परन्तु यदि हम अपने हृदय में पाप को स्थान देते हैं, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि हम उन आशिषों का पूरा आनन्द नहीं उठा सकेंगे जो वह हमारे लिए रखना चाहता है।
इसलिए, हम अपने प्रभु की आज्ञाओं का पालन करने का प्रयास करते हैं, परन्तु चूंकि हम इसे पूरी तरह नहीं कर सकते, इसलिए हमें अपने प्रभु के सामने निरन्तर पश्चाताप करते रहना भी आवश्यक है। यीशु ने यूहन्ना 13 में दैनिक पश्चाताप की आवश्यकता और महत्त्व को उजागर किया, जब वह अपने शिष्यों के पैर धोने वाला था और पतरस ने कहा, “तू मेरे पाँव कभी न धोने पाएगा!” इसके जवाब में यीशु ने कहा, “यदि मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं” (यूहन्ना 13:8)। जब तक यीशु हमें नहीं धोता, तब तक हमें क्षमा नहीं मिलती—और उसके बाद भी, वह प्रतिदिन हमारे पश्चाताप और विश्वास के द्वारा हमें शुद्ध करता रहता है।
एक दिन जब हम स्वर्ग में प्रवेश करेंगे, तो पाप की उपस्थिति से भी मुक्त कर दिए जाएँगे। परन्तु उस महान दिन तक हमारा मसीही जीवन एक पश्चाताप की यात्रा बना रहेगा। आप उद्धार पा चुके हैं। आप उद्धार पाएँगे। लेकिन अभी, इसी क्षण, परमेश्वर की करुणा से प्रतिदिन पश्चाताप करते हुए और यीशु की ओर लौटते हुए आप उद्धार पा रहे हैं।
रोमियों 7:7 – 8:2
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: भजन 123–125; 2 कुरिन्थियों 7 ◊