27 सितम्बर : वे अपने फल से पहचाने जाते हैं

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27 सितम्बर : वे अपने फल से पहचाने जाते हैं
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“कोई अच्छा पेड़ नहीं जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है जो अच्छा फल लाए। हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है।” लूका 6:43-44

छात्र हमेशा अपने शिक्षकों की शिक्षा का प्रतिबिम्ब होते हैं। चाहे कोई छात्र अपने शिक्षक की क्षमताओं से कहीं आगे क्यों न बढ़ जाए, वह हमेशा उस मार्गदर्शन का ऋणी रहेगा जो उसे मिला था।

जब यीशु ने पेड़ों और उनके फलों के बारे में कहा, तो उनका ध्यान अपने समय के आत्मिक अगुवों की ओर था। इस शिक्षा के माध्यम से उसने हमें एक चेतावनी दी—कि हम गलत शिक्षक का चुनाव न करें। और हम यह कैसे जानें कि कौन-सा शिक्षक अच्छा है और कौन बुरा? यीशु कहता है—उसके फलों से, अर्थात् उनकी शिक्षा और आचरण से जो परिणाम निकलते हैं, वे बताएँगे कि वह शिक्षक कैसा है।

जब हम फलों की बात करते हैं, तो हम शिक्षक के चरित्र के सम्बन्ध में बात कर रहे हैं—और चरित्र को केवल बोलने की कला या प्रतिभा से नहीं परखा जा सकता। यीशु ने जब दाखलता और डाली की बात की, तो वहाँ यह स्पष्ट होता है कि फलवन्त होने का अर्थ मसीह के समान होना है (यूहन्ना 15:1–8)। हर पेड़ उसके फल से पहचाना जाता है। इसलिए आत्मा का फल—प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम (गलातियों 5:22–23)—एक अच्छे शिक्षक के जीवन में स्पष्ट रूप से प्रकट होगा।

हमें शिक्षक की शिक्षा की सामग्री को भी परखना चाहिए। पौलुस ने जब अपने प्रिय सेवक तीमुथियुस को लिखा, तो उसने इस मसले पर कहा: “अपनी चौकसी रख”—अर्थात् अपने चरित्र की—“और अपने उपदेश की चौकसी रख” (1 तीमुथियुस 4:16)। क्योंकि हर वह व्यक्ति जो बाइबल लेकर आता है, जरूरी नहीं कि आपके हित में ही बोलता हो। हर वह व्यक्ति जो मसीह का नाम लेता है, जरूरी नहीं कि वह परमेश्वर के वचन का सच्चा शिक्षक हो। झूठे भविष्यवक्ताओं की भरमार है। इसलिए मसीही विश्वासियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे बाइबल से सीखें, न केवल पवित्रता में बढ़ने के लिए, बल्कि सही शिक्षा को पहचानने के लिए भी—जो कि एक परमेश्वर-भक्त शिक्षक की पहचान है। हमें इस तथ्य से भी ढाढ़स मिलना चाहिए कि पवित्र आत्मा हमारे भीतर निवास करता है, जो हमें सब बातों की शिक्षा देता है और सत्य व असत्य के बीच अन्तर समझने की बुद्धि देता है (1 यूहन्ना 2:27)।

एक शिक्षक के चरित्र और उसकी शिक्षा की सामग्री में गहरा सम्बन्ध होता है—और इसका सीधा असर उस व्यक्ति पर पड़ता है जो उससे शिक्षा प्राप्त करता है। इसलिए अपने आत्मिक शिक्षकों और मार्गदर्शकों का चुनाव सोच-समझकर करें। उनकी बोलने की कला या सांस्कृतिक समझदारी या आत्मविश्वास या हास्य या लोकप्रियता को मत देखें—बल्कि देखें कि उनका चरित्र कैसा है और वे क्या सिखा रहे हैं। क्योंकि इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपके जीवन में वही फल दिखाई देगा, जो आप अपने शिक्षक से सीखते हैं। जब लोग आपके पास आएँगे, तो वे क्या पाएँगे? क्या वे आलोचना, कटुता, अभिमान या आत्म-धार्मिकता पाएँगे? क्या वे उत्साह की कमी और विश्वास की दुर्बलता पाएँगे? या फिर, क्या वे प्रेम, आनन्द, शान्ति और धार्मिकता के मधुर फल को चख पाएँगे?

2 तीमुथियुस 2:15-26

पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: यहेजकेल 18–19; यूहन्ना 12:1-26 ◊

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