
“मैं दाखलता हूँ : तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।” यूहन्ना 15:5
शौकिया फोटोग्राफर्स अक्सर यह नहीं जानते कि वे किस पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि वे जानते हैं कि वे किस पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं, लेकिन फिर तस्वीरों में धुंधले चेहरे और टेढ़ी-मेढ़ी इमारतें दिखाई देती हैं। फिर वे अपनी तस्वीरों को देखते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं, “यह वह नहीं है जिस पर मैं ध्यान केन्द्रित कर रहा था!” लेकिन हकीकत यह है कि तस्वीरें बिल्कुल वही दिखाती हैं जिस पर उनके कैमरे का लेंस केन्द्रित था।
जिन्दगी के उतार-चढ़ाव में और हर एक पल में हम जिस तरह से हालातों पर प्रतिक्रिया करते हैं, वह हमारे दिल और दिमाग के ध्यान के केन्द्र को प्रकट कर देता है। इसलिए विश्वासियों के लिए चुनौती यह है कि वे परमेश्वर पर अपना ध्यान केन्द्रित करके जीएँ।
यीशु ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि हमें परमेश्वर पर अपना ध्यान केन्द्रित करना है, तो सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि हम उसके बिना कौन हैं। वास्तव में, यीशु ने अपने शिष्यों से कह दिया था कि उसके बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते; आखिरकार, “सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं” (कुलुस्सियों 1:17)। हमें यीशु की ज़रूरत केवल आंशिक तौर पर नहीं है, बल्कि पूरी तरह से है। हम परमेश्वर की मदद के बिना तो एक सांस भी नहीं ले सकते। जो भी कार्य वह हमारे द्वारा कर रहा है, उसका कोई भी श्रेय हम कैसे ले सकते हैं? दिव्य सहायता के बिना हम पूरी तरह से अभाव में हैं।
यह सिद्धान्त पूरी बाइबल में पाया जाता है। मूसा ने, जिसे परमेश्वर ने इस्राएली लोगों को बन्धन और गुलामी से मुक्त करने के लिए चुना था, दृढ़ता से कहा कि वह यह कार्य तब तक नहीं कर सकता जब तक परमेश्वर उसके साथ नहीं होता—और वह सही था (निर्गमन 3:11-12)। आमोस अंजीर के पेड़ों का किसान और भेड़ों का चरवाहा था; जब परमेश्वर ने उसे भविष्यवक्ता के रूप में नियुक्त किया, तो उसके पास सेवाकार्य में योगदान देने के लिए कुछ नहीं था (आमोस 7:14-15)।
इसी प्रकार दानिय्येल, जिसने अद्भुत तरीके से सपनों का अर्थ बताया, सारा श्रेय परमेश्वर को देने में तत्पर था (दानिय्येल 2:26-28)। इन सभी पुरुषों ने परमेश्वर पर अपनी पूरी निर्भरता को पहचाना। वास्तव में, बाइबल में परमेश्वर के लिए महान कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर हुए बिना ऐसा कर ही नहीं सकता था। जिस कार्य को करने के लिए उन्हें बुलाया गया था, उसे पूरा करने की क्षमता के लिए उन्होंने अपने भीतर देखने के बजाय ऊपर परमेश्वर की ओर देखा।
एक मसीही के रूप में, हमें परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित करके जीने के लिए अपने आप पर या अपनी क्षमताओं पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से हम अपने जीवन में परमेश्वर के अनुग्रह और शक्ति को छिपा सकते हैं। मसीह में, हमें अपनी क्षमताओं पर घमण्ड नहीं करना है या अपने आप को आकर्षित करने का कोई अवसर नहीं ढूँढना है। बल्कि हमें केवल जीवित परमेश्वर के सेवक के रूप में पहचाने जाने की इच्छा रखनी है और उसकी सेवा में उपयोगी बनना है, जब वह हमारे अन्दर अपने अच्छे उद्देश्य के अनुसार कार्य करता है, और जो भी हम करते हैं या कहते हैं, उसमें हम ध्यान अपने ऊपर न लाकर उसके ऊपर लेकर आएँ।
आज आपका ध्यान कहाँ होगा? और जब सफलता या प्रशंसा आपकी ओर आएँगे, तो इसका श्रेय आप किसे देंगे?
लूका 17:7-19
◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: भजन 40–42; प्रेरितों 18