“वचन में या काम में जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।” कुलुस्सियों 3:17
आज आपको और मुझे करने के लिए एक काम दिया गया है।
कुरिन्थियों को लिखे अपने पहले पत्र में जब प्रेरित पौलुस ने कलीसिया को आदेश दिया कि वे तीमुथियुस का अपने बीच तन्मयता से स्वागत करें, तो ऐसा इसलिए नहीं था कि तीमुथियुस अपना नाम करने का प्रयास कर रहा था, या उसके पास कोई विशेष सम्मान या उपाधि थी, या वह उल्लेखनीय बनने का इच्छुक था। कदापि नहीं, यह केवल इसलिए था क्योंकि तीमुथियुस “प्रभु का काम करता था” (1 कुरिन्थियों 16:10)।
प्रभु के काम में वह सब शामिल है, जिसको करने के हम इच्छुक हैं या अपने मन को केन्द्रित करते हैं और जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है, और जो हम दूसरों को प्रभावित करने के बजाय प्रभु के लिए करते हैं (कुलुस्सियों 3:23)। यह मसीह की देह के भीतर या हमारे आस-पास के संसार की सेवा के रूप में किया जाने वाला कोई भी काम हो सकता है।
पौलुस ने एक उद्देश्य के साथ पद 17 में “जो कुछ भी करो” वाक्यांश को जोड़ा है। मसीही सेवा में “जो कुछ भी” का अर्थ है कि हमारे सभी प्रयासों में पवित्र आत्मा की सहायता से हमें सुसमाचार के सेवाकार्य में प्रभावी रूप से लगे होने के लिए अपने आप को स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। भले ही हम किसी पड़ोसी की सहायता कर रहे हों, हमारी कलीसिया के दरवाजे से आने वाले आगंतुकों का अभिवादन कर रहे हों, या समुदाय में स्वयंसेवक के रूप में कार्य कर रहे हों, प्रत्येक सेवा दूसरों को हमारे उद्धारकर्ता के बारे में साक्षी देने का एक अवसर है। यह जानना कितने विशिष्ट आदर की बात है कि हमें यहाँ पृथ्वी पर अविश्वासी लोगों को यीशु मसीह के प्रतिबद्ध अनुयायी बनते देखने के लिए रखा गया है!
मसीह की देह के भीतर हमें यह समझना चाहिए कि हमारा आत्मिक विकास प्रभु के प्रति दूसरों की सेवा का परिणाम है। पौलुस ने कुरिन्थियों को मसीह के नाम पर अपने श्रम के परिणाम के रूप में उचित रीति से देखा और यह लिखा कि “क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं?” (1 कुरिन्थियों 9:1)। कुरिन्थुस में कलीसिया का अस्तित्व इसी तथ्य के कारण था कि वह प्रभु का काम कर रहा था। पौलुस न तो निष्फल था और न ही विशेष; इसके विपरीत, वह उद्देश्यपूर्ण रूप से एक विशिष्ट जिम्मेदारी के लिए नियुक्त किया गया था।
मसीहियों के रूप में हमें केवल बैठकर सीखने का नहीं अपितु विकसित होने तथा जाने का, और मछली पकड़ने तथा खिलाने का बुलावा मिला है। परमेश्वर प्रत्येक विश्वासी को मसीही सेवाकार्य और सेवा के अन्तर्गत विशेष जिम्मेदारियाँ सौंपता है और उन जिम्मेदारियों में आज हमारे सामने आने वाली परिस्थितियों और अवसरों में उसके लिए काम करना शामिल है; क्योंकि वे संयोग मात्र से नहीं परन्तु ईश्वरीय योजना द्वारा प्राप्त होती हैं। पौलुस ने परमेश्वर की बुलाहट के प्रति अपनी आज्ञाकारिता के द्वारा इसे हमारे लिए सराहनीय रूप से प्रस्तुत किया है, यह पहचानते हुए कि वह “चुना हुआ पात्र” था, जो “अन्यजातियों और राजाओं और इस्राएलियों के सामने” परमेश्वर का नाम प्रकट करने वाला था (प्रेरितों के काम 9:15)।
प्रभु का काम वह काम था जिसे पौलुस ने गम्भीरता से लिया। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए। हम सभी को, चाहे हम जहाँ कहीं भी हों, परमेश्वर का आदर करने का बुलावा दिया गया है। इस पर विचार करें कि आपके सोचने और काम करने के तरीके में क्या बदलाव आ सकता है, यदि आप प्रति क्षण अपने आप से पूछें कि “अब, यीशु मुझसे इस परिस्थिति में क्या करवाना चाहता है? मैं इस क्षण में उसके नाम की स्तुति कैसे कर सकता हूँ और उसे कैसे प्रसन्न कर सकता हूँ?” आज आपके पास उसके लिए काम करने का विशेषाधिकार है।
भजन संहिता 127