“उसने तीसरी बार उससे कहा, ‘हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?’पतरस उदास हुआ कि उसने उससे तीसरी बार ऐसा कहा, ‘क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?’और उससे कहा, ‘हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।’” यूहन्ना 21:17
मसीही विश्वास का मूल किसी व्यवस्थित थिओलॉजी के कोर्स को पूरा करने या सैद्धान्तिक शिक्षाओं को याद करके दोहराने में नहीं है। इसका केन्द्र बिन्दु यीशु मसीह के साथ एक जीवन्त सम्बन्ध है—अर्थात उसे जानना और उससे प्रेम प्राप्त करना, और बदले में उससे प्रेम करना।
यह हमें प्रत्यक्ष रूप से उस समय दिखाई देता है जब पुनरुत्थित यीशु ने अपने चेलों के साथ झील के किनारे भोजन करने के बाद पतरस से एक निजी बातचीत आरम्भ की। इस बातचीत के परिणाम में पतरस के मन में अपराध-बोध आया और उसे एक बुलावा मिला। परन्तु सर्वोपरि, यह मसीह के उन लोगों के प्रति गहन ज्ञान और देखभाल को प्रकट करती है जो उससे प्रेम करते हैं। मसीह की सबसे बड़ी चिन्ता थी पतरस द्वारा इस प्रश्न का उत्तर: “क्या तू मुझ से प्रेम करता है?”
इस संवाद में यीशु ने पतरस से यह प्रश्न बार-बार पूछा। यह केवल भावुकता को उकसाने के लिए नहीं था; इसने एक निर्णय की माँग की। इस प्रश्न की पुनरावृत्ति पतरस के उन तीन बार इनकार की कठोर याद दिलाती है जब उसने कहा था कि वह यीशु को नहीं जानता (यूहन्ना 18:15–18, 25–27)। इससे पतरस को यह स्वीकार करना पड़ा कि उसके हाल के कार्य मसीह के प्रति उसके प्रेम को सिद्ध नहीं करते थे। वह अपने कामों के द्वारा अपने प्रेम का प्रमाण नहीं दे सका था।
जब हम अपने जीवन में ठोकर खाते हैं, तब हम भी इसी सच्चाई पर पहुँचते हैं। जब मसीह हमसे वही प्रश्न पूछता है, तो हमारे पास ऐसा कुछ नहीं होता जिसे दिखाकर हम अपने प्रेम का प्रमाण दे सकें। पतरस परमेश्वर पिता के सामने और मसीह के सामने केवल एक बात का सहारा ले सकता था: परमेश्वर का सर्वज्ञ होना—“प्रभु . . . तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” वैसे ही, हम भी केवल यीशु के समझने वाले हृदय की ओर देख सकते हैं।
हमारे कार्य हमें हतोत्साहित कर सकते हैं, हमारी परिस्थितियाँ हमें झकझोर सकती हैं, और परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम क्षीण हो सकता है—लेकिन हम इस सत्य में दिलासा पा सकते हैं कि यीशु हमारे हृदयों को जानता है! वह जानता है कि हमारा हृदय असफल हो सकता है। वह जानता है कि हमारा विश्वास कमज़ोर हो सकता है। लेकिन यही असफलताएँ तो हैं जिनके कारण वह इस संसार में आया, क्रूस पर मरा, और फिर जी उठा।
यदि हम अपने जीवन में पुनः स्थापन की आवश्यकता महसूस करें, परन्तु हमारे पास अपनी सफाई में कहने को कुछ न हो, तो हमारी अद्भुत आशा यह है कि हम कह सकते हैं, “प्रभु, तू जानता है।” और यदि हमें लगे कि हमारा प्रेम ठण्डा पड़ गया है और उसे पुनः प्रज्वलित करने के लिए हमारे अन्दर कुछ नहीं बचा है, तो अद्भुत सत्य यह है कि हम उस मसीह की ओर देख सकते हैं जो हमारे लिए क्रूस पर टंगा रहा: “हम इसलिए प्रेम करते हैं, कि पहले उसने हम से प्रेम किया” (1 यूहन्ना 4:19)।
एक क्षण ठहरकर परमेश्वर के अनुग्रह और प्रेम की महानता और निकटता पर मनन करें। यीशु ने आपके सारे अपराधों को क्रूस पर उठा लिया, ताकि आप पाप के लिए मरकर उसके लिए जीवित रहें (1 पतरस 2:24), और वह आज भी आपके सारे दोषों के बावजूद आपसे सम्बन्ध बनाए रखना चाहता है। वह आपको पूर्णतः जानता है, और फिर भी पूरी रीति से प्रेम करता है।
क्या आप उससे प्रेम करते हैं? क्योंकि निश्चित ही, उससे अधिक योग्य और कोई नहीं है।
1 यूहन्ना 3:16-24
◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: नहेम्याह 12–13; लूका 21:1-19