22 जनवरी : तूफानों के आने पर

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22 जनवरी : तूफानों के आने पर
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“तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं कि वह पानी से भरी जाती थी। पर वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था। तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, ‘हे गुरु, क्या तुझे चिन्ता नहीं कि हम नष्ट हुए जाते हैं?’ तब उसने उठकर आँधी को डाँटा, और पानी से कहा, ‘शान्त रह, थम जा!’ और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया।”  मरकुस 4:37-39

जो व्यक्ति काफी जीवन जी चुका है, वह जानता है कि जीवन में तूफान अवश्य आएँगे। कभी-कभी, पता नहीं कहाँ से, कभी अचानक हमें नौकरी छूट जाने, किसी भयानक बीमारी का पता लगने, किसी प्रियजन की दुखद मृत्यु का या किसी के चले जाने के दुख का सामना करना पड़ता है। गलील की झील पर तूफान में फँसे चेलों की तरह हम भी इन परीक्षाओं से पूरी तरह पराजित महसूस कर सकते हैं, मानो हमारी नाव डूब रही हो।

यीशु के पीछे चलने से हम जीवन के तूफानों से बच तो नहीं जाते, किन्तु हम यह जानते हुए विश्राम अवश्य पा सकते हैं कि परमेश्वर हमें इनमें स्थिर रखने की प्रतिज्ञा करता है। वह हमारे हृदयों को शान्त कर सकता है और वह तूफानों को भी शान्त कर सकता है।

जब तूफान आते हैं तो हम प्रायः परमेश्वर पर सन्देह करने के लिए प्रलोभित हो जाते हैं। चेलों ने भी यीशु से प्रश्न पुछा, भले ही उन्होंने उसके चमत्कारों को प्रत्यक्ष रूप से देखा था। उन्होंने यीशु को आमने-सामने देखा था और वे प्रतिदिन उनके साथ खाना खाते थे, किन्तु जब तूफान आया तो वे अविश्वास के आतंक में डूब गए, मानो वे भूल गए हों कि वह कौन था या वह क्या करने में सक्षम था। क्या हम प्रायः अपने आप को भी ऐसी ही परिस्थिति में नहीं पाते हैं? जैसे ही उतार-चढ़ाव आते हैं, जैसे ही जीवन की आँधियाँ और लहरें उठने लगती हैं, हमारे सन्देह और निर्बलताएँ फूट पड़ती हैं, हम भूल जाते हैं कि हमारे भीतर कौन रहता है और वह क्या करने में सक्षम है।

परमेश्वर तूफानों को आने से रोकता नहीं है। किन्तु वह एक ऐसा परमेश्वर है, जो उन तूफानों के मध्य में उपस्थित रहता है और उन पर सम्प्रभुता रखता है। यीशु न केवल बड़ी आँधी आने के समय चेलों के साथ रहा, अपितु उसने उसे शान्त करके अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन भी किया। परमेश्वर होने के नाते उसने स्वयं उस समुद्र को रचा था। वह समुद्र उसके लिए क्या ही समस्या ठहरेगा? हमारे लिए भी, यहाँ तक कि ऐसी परिस्थितियाँ भी जो निराशाजनक और दुर्गम लगती हैं, हमारे लिए वही सामने लेकर आती हैं जो उसकी योजना है। जब कठिनाइयाँ, डर और कष्ट बने रहें, उन समयों में भी हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि वह हमें ऐसी शान्ति देगा जो “सारी समझ से परे है” (फिलिप्पियों 4:7) और हमें शान्ति के स्थान पर ले आएगा, चाहे वह इस जीवन में आए या केवल मृत्यु के अन्तिम तूफान के बाद।

तो फिर, प्रश्न यह नहीं है कि “क्या मेरे जीवन में तूफान आएँगे?” यह तो निश्चित है कि वे आएँगे। इसके विपरीत, हमें यह पूछना चाहिए कि “जब तूफान आएँगे तो क्या मैं विश्वास करूँगा कि यीशु मसीह उनसे निपटने में सक्षम है, और क्या मैं उसे ऐसा करने दूँगा?” वह हमारे मनों में छाए सन्देह के बादलों को हटा सकता है। वह टूटे हुए दिलों को जोड़ सकता है। वह प्रेम के लिए हमारी लालसा को शान्त कर सकता है। वह थकी हुई आत्माओं को सजीव कर सकता है। वह व्याकुल आत्माओं को शान्ति प्रदान कर सकता है।

यीशु को जगत के सृष्टिकर्ता के रूप में देखने पर, जिसने समुद्र को शान्त किया, और जिसमें सब कुछ स्थिर बना रहता है, आप भी तूफान के शान्त हो जाने का अनुभव कर सकते हैं।

 मरकुस 4:35-41

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