“मैं आलसी के खेत के पास से और निर्बुद्धि मनुष्य की दाख की बारी के पास से होकर जाता था,तो क्या देखा कि वहाँ सब कहीं कंटीले पेड़ भर गए हैं;और वह बिच्छू पौधों से ढँक गई है;और उसके पत्थर का बाड़ा गिर गया है . . . छोटी सी नींद,एक और झपकी,थोड़ी देर हाथ पर हाथ रख के और लेटे रहना. . .” नीतिवचन 24:30-31, 33
कल्पना करें कि आप सड़क पर गाड़ी चला रहे हैं और एक ऐसे घर के पास से गुजरते हैं जो पूरी तरह से टूटा-फूटा है और जहाँ हर ओर झाड़ियाँ उग आई हैं। पहले तो आप यही सोचेंगे कि शायद यहाँ कोई नहीं रहता। लेकिन फिर आप एक टूटी खिड़की से किसी व्यक्ति को देखते हैं। आप सोचते हैं, शायद मालिक बीमार है और अपने घर की देखभाल नहीं कर पा रहा। फिर वह व्यक्ति बाहर आता है—और पूर्णतः स्वस्थ दिखाई देता है। तब आप समझ जाते हैं: वह केवल आलसी है।
इस नीतिवचन में इसी दृश्य को वर्णित किया गया है: एक आलसी व्यक्ति उस भूमि पर रहता है, और उसकी दाख की बारी उसके आलस्य की गवाही देती है।
आलसी लोग गरीबी और अपमान में जीने की इच्छा लेकर नहीं उठते। बल्कि जब उन्हें परिश्रम करने की चुनौती मिलती है, तो उनका रवैये में कुछ ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं, जो हममें से कई लोग अपने भीतर पहचान सकते हैं यदि हम परमेश्वर के वचन के दर्पण में झाँकने को तैयार हों।
एक आलसी व्यक्ति केवल अपने बिस्तर का आनन्द नहीं लेता—वह मानो एक किवाड़ के समान उस पर झूलता रहता है। वह हिल-जुल तो बहुत करता है, परन्तु किसी वास्तविक कार्य की ओर कोई प्रगति नहीं करता (नीतिवचन 26:14)। वह किसी कार्य को करने से सीधे मना नहीं करता, बल्कि धीरे-धीरे, एक क्षण से दूसरे क्षण तक, उसे टालता जाता है—और अपने आप को धोखा देता है कि वह कभी-न-कभी उसे कर ही लेगा।
आलसी व्यक्ति बहाने बनाने में निपुण होता है। कार्य करने की इच्छा न होने के कारण, वह हमेशा कुछ न कुछ कारण खोज लेता है ताकि वह अपनी निष्क्रियता को जारी रख सके। कूड़ेदान बाहर फेंकना कोई कठिन कार्य नहीं है, परन्तु आलसी व्यक्ति उस सरल कार्य को भी टालने के लिए कोई-न-कोई तर्क गढ़ ही लेता है।
आश्चर्यजनक रूप से, आलसी व्यक्ति हमेशा तृप्ति की भूख में रहता है, क्योंकि उसकी आत्मा की स्थिति के कारण उसे वह कभी नहीं मिलती। वह सन्तोष को कहीं दूर “बाहर” खोजता है, परन्तु उसे कभी प्राप्त नहीं करता। आलसी व्यक्ति लालसा तो बहुत वस्तुओं की करता है, परन्तु प्राप्त कुछ भी नहीं करता, इसलिए नहीं कि वह इसमें सक्षम नहीं है, बल्कि इसलिए कि वह इसके लिए अनिवार्य परिश्रम नहीं करता। विश्राम की अधिकता में भी वह बेचैन रहता है।
जब आलस्य हमारे जीवन की पहचान बन जाता है, तो हम स्वयं को यह समझाने लगते हैं कि हम दस मील दौड़ने के लिए तैयार हैं, उस लेख को लिखना आरम्भ करने जा रहे हैं, या उस परियोजना को पूरा करने ही वाले हैं—लेकिन जब तक परमेश्वर का सामर्थ्य और अनुग्रह हमारी वास्तविकता को नहीं बदलते, तब तक ये बातें केवल कल्पनाओं में ही रहती हैं।
आलस्य को कभी छोटा या तुच्छ दोष समझने की भूल न करें। आलस्य कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि एक पाप है। धीरे-धीरे यह हमारे पूरे जीवन को प्रभावित कर सकता है, और बिना हमें महसूस कराए, अपनी शक्ति में बढ़ता जाता है—और शैतान यही चाहता है कि हम निष्क्रियता में हार मान लें। आप किन क्षेत्रों में आलस्य के प्रति आकर्षित होते हैं? क्या कोई ऐसा कार्य है जिसे आप टाल रहे हैं या जिसके लिए आप बहाना बना रहे हैं? क्यों? क्या आप इस पाप का सामना करेंगे और परमेश्वर से माँगेंगे कि वह आपकी सहायता करे कि आप इस पाप से निर्दयता, अनिवार्यता और निरन्तरता के साथ निपटें?
2 थिस्सलुनीकियों 3:6-15
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: नहेम्याह 10–11; लूका 20:27-47 ◊