
“अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए।” 2 तीमुथियुस 2:15
आप किसकी सराहना के लिए जी रहे हैं?
स्वभाव से ही हम दूसरों से स्वीकृति पाने की इच्छा करते हैं। लेकिन विश्वासियों के रूप में जिस स्वीकृति की हमें सबसे अधिक चाहत रखनी है, वह है परमेश्वर की स्वीकृति। इस अद्भुत सत्य पर विचार करने के लिए समय निकालना आवश्यक है कि आज हम जो कुछ भी करते हैं, वह उस परमेश्वर को प्रसन्न कर सकता है, जो सारी सृष्टि का पालक है (1 थिस्सलुनीकियों 4:1), और एक दिन, वह उन लोगों का स्वागत करेंगे जिन्होंने उसके लिए पूरी तरह से जीवन व्यतीत किया, और स्वागत के समय ये शब्द बोलेगा, “धन्य, हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास” (मत्ती 25:21, 23)। कल्पना कीजिए कि दिव्य होंठों से आपको ये शब्द सुनने को मिलेंगे!
तो फिर, कैसे हम “अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न करें, जो लज्जित होने न पाए”?
सर्वप्रथम, हमें अन्त तक विश्वास बनाए रखने का संकल्प लेना होगा। पौलुस ने अपनी दौड़ के अन्तिम मोड़ पर तीमुथियुस से कहा, “मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है” (2 तीमुथियुस 4:7)। पौलुस का जीवन क्षणिक उत्साह के झटकों और फिर लम्बे निष्क्रियता के दौरों से भरा हुआ नहीं था। वह जानता था कि विश्वास की दौड़ एक आजीवन चलने वाली मैराथॉन है, जिसे अन्त तक दृढ़ता से दौड़ना होता है।
हम नहीं चाहते कि हमें केवल कभी-कभार आने वाले छोटे-छोटे उत्साह के झोंकों के लिए जाना जाए। विशेषकर हमें ऐसे लोग बनने से बचना चाहिए जो परमेश्वर का कार्य केवल तभी करते हैं, जब अन्य मसीही लोग हमें देख रहे हों। इसके बजाय, हमें हर दिन पूरी लगन से दौड़ लगानी है, यह स्मरण रखते हुए कि परमेश्वर की दृष्टि सदा हम पर बनी रहती है।
जब हम विश्वास में आगे बढ़ते हैं, तो हम यह याद रख सकते हैं कि हमें “धर्म का वह मुकुट” प्रतिज्ञा किया गया है, जो हमारे लिए “रखा हुआ है” और “जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है,” हमें देगा (2 तीमुथियुस 4:8)। और हमें यह याद रखना चाहिए कि हम अपनी ताकत से नहीं दौड़ रहे हैं। बल्कि हमें यह पूरा विश्वास रखना चाहिए कि “जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा” (फिलिप्पियों 1:6)। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है कि वह हमें मार्ग में कभी अकेला नहीं छोड़ेगा (इब्रानियों 13:5)। यदि समापन रेखा अभी दूर है, तो हमें उस पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय यीशु पर ध्यान लगाए रखना है, और अपनी आँखें “विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले” पर लगाए रखनी हैं (इब्रानियों 12:2)।
कभी भी उस एक जीवन के प्रभाव को कम मत आँकिए जो पूरी तरह परमेश्वर की महिमा के लिए जीया गया हो। उस दिन की कल्पना करें, जब आप अपने स्वर्गिक पिता के सामने एक स्वीकृत सेवक के रूप में खड़े होंगे और यह विचार आपके दिल में नम्रता भर देगा और आप कहेंगे, “प्रभु, मैं पूरे मन से यही चाहता हूँ कि मेरे जीवन पर तेरी स्वीकृति बनी रहे। ‘मैं केवल एक हूँ, लेकिन मैं ही हूँ। जो मैं कर सकता हूँ, वह मुझे करना चाहिए। और जो मुझे करना चाहिए, उसे मैं तेरे अनुग्रह से करूँगा।’”[1]
मत्ती 25:14-46
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: 1 शमूएल 22–24; 1 तीमुथियुस 1 ◊
[1] एडवर्ड एवरेट हेल को श्रेय दिया जाता है।