20 अक्तूबर : अलौकिक धैर्य

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20 अक्तूबर : अलौकिक धैर्य
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“हे भाइयो, हम तुम्हें समझाते हैं कि जो ठीक चाल नहीं चलते उनको समझाओ, कायरों को ढाढ़स दो, निर्बलों को सम्भालो, सब की ओर सहनशीलता दिखाओ।” 1 थिस्सलुनीकियों 5:14

धैर्य एक महान गुण है। यह एक बड़ी चुनौती भी है!

जब प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को अपनी पहली पत्री समाप्त की, तो उसने अमूल्य सिद्धान्तों की एक शृंखला लिख डाली। प्रत्येक सिद्धान्त माला में लगे एक रत्न की तरह है, एक पवित्र सत्य जिसे हमें अपने जीवन के राह पर चलते हुए अपने गले में धारण करना चाहिए (नीतिवचन 3:3)। इन सिद्धान्तों में सबसे प्रमुख आदेश है धैर्य रखना।

यूनानी भाषा में पौलुस ने ‘makrothumeo’ शब्द का उपयोग किया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “लम्बे दिल वाला” और जिसे पवित्रशास्त्र में आमतौर पर परमेश्वर के चरित्र को व्यक्त करने के लिए उपयोग किया गया है (उदाहरण के लिए, रोमियों 2:4; 2 तीमुथियुस 1:16; याकूब 5:10)। धैर्य का मतलब है उन लोगों के प्रति जल्दी गुस्सा न होना जो असफल होते हैं। पौलुस हमें बताता है कि हमें इस प्रकार का दिव्य धैर्य रखना चाहिए, जब हमारा सामना आलसी, निराश और कमजोर भाइयों-बहनों से होता है। इनका सामना करने से हमें परमेश्वर के धैर्य को अपने जीवन में जीने का अवसर मिलता है।

हम इस तरह का धैर्य कैसे प्राप्त करें? यह स्वाभाविक रूप से नहीं आता! सबसे पहले हमें परमेश्वर को देखना होगा। हमारा परमेश्वर ऐसा परमेश्वर है, जो “दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करने वाला [makrothumeo] और अति करुणामय है” (भजन 103:8)। वह हमारे पापी और विद्रोही दिलों को देखता है और फिर भी हमें माफ कर देता है। वह हमारी बार-बार होने वाली असफलताओं को देखता है और फिर भी हमें त्यागता नहीं है। वह हमारी शंकाओं और चिन्ताओं को देखता है और फिर भी हमारे साथ कोमल रहता है। हमें इस प्रकार के धैर्य को अपने जीवन में दर्शाना है। और इसलिए हमें परमेश्वर से मदद मांगनी होगी। यह अलौकिक धैर्य केवल परमेश्वर ही अपने पवित्र आत्मा के द्वारा हमारे जीवनों में उत्पन्न कर सकता है।

उदाहरण के लिए, पौलुस ने प्रार्थना की कि कुलुस्से के विश्वासी “उसकी महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त होते जाएँ, यहाँ तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सकें” (कुलुस्सियों 1:11)। हममें से प्रत्येक को कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो हमारे लिए यह प्रार्थना करे, और साथ ही हमें स्वयं के लिए भी यह प्रार्थना करनी चाहिए। हममें से प्रत्येक को दूसरों के लिए भी यही करना चाहिए, क्योंकि यह एक ऐसी प्रार्थना है जिसका उत्तर देने के लिए परमेश्वर तत्पर है। जब परमेश्वर की शक्ति हमारे जीवन में प्रकट होती है, तो हम तब भी सहन कर सकते हैं जब हमें हार मान लेने का मन होता है, और हम तब भी धैर्य दिखा सकते हैं जब भीतर से सब कुछ खो देने जैसा महसूस होता है।

आप दैनिक जीवन की परेशानियों का कैसे जवाब देंगे—जब आप किसी लाइन में खड़े हों, या हरी बत्ती खड़े हों लेकिन आपके सामने वाली कार नहीं चल रही हो? आप उन भाई-बहनों से कैसे पेश आएँगे जो आलसी, निराश, या कमजोर हैं? उन परिस्थितियों में और उन लोगों के साथ आपका बस एक ही नारा होना चाहिए—धैर्य। हो सकता है कि आपके आस-पास के लोग आपके धार्मिक ज्ञान से ज्यादा प्रभावित न हों, लेकिन वे निश्चित रूप से आपकी अधीरता को देखेंगे, जो यह दर्शाता है कि आप दूसरों की तुलना में अपने समय और रुचियों को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। लेकिन इसके विपरीत, वे आपके धैर्य को भी देखेंगे, जो उन्हें यह बताएगा है कि आप दूसरों की भलाई और उनकी जरूरतों को अपने से ऊपर मानते हैं (फिलिप्पियों 2:3)—ठीक वैसे ही जैसे हमारा स्वर्गिक पिता करता है।

निश्चित रूप से आज आपको ऐसे अवसर मिलेंगे जब आप मानव अधीरता दिखाने के बजाय ईश्वरीय धैर्य दिखा सकें। उन क्षणों में, परमेश्वर के धैर्य की विशालता को पहचानें जो उसने आपके प्रति दिखाया है और आप निश्चित रूप से दूसरों के लिए अपने धैर्य में वृद्धि करेंगे।

कुलुस्सियों  1:9-12

◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: 1 शमूएल 19–21; 2 पतरस 3

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