
“फिर मैंने नए आकाश और नयी पृथ्वी को देखा, क्योंकि पहला आकाश और पहली पृथ्वी जाती रही थी, और समुद्र भी न रहा।” प्रकाशितवाक्य 21:1
यीशु मसीह की वापसी के बारे में हम क्या जानते हैं? बाइबल हमें कुछ बातें बताती है, जो सीधी और स्पष्ट हैं। हम जानते हैं कि यीशु व्यक्तिगत रूप से, शारीरिक रूप से, दृश्यमान रूप से और महिमामय रूप से लौटेगा। हम यह भी जानते हैं कि उसके पुनः प्रकट होने का समय गुप्त होगा, यह अचानक होगा, और यह उन लोगों के बीच विभाजन लाएगा जो उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं और जो उसे अस्वीकार कर रहे हैं।
इसके अलावा, जैसा कि पहले शताब्दी में कष्ट सहने वाले संतों को प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में बताया गया था, वही आज हमें भी बताया जा रहा है: हमें इस संसार की समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि सब कुछ यीशु के नियन्त्रण में है। मसीह का राज्य तब पूर्ण रूप से स्थापित हो जाएगा, जब उसका राज्य सम्पूर्ण और स्थाई रूप में आएगा और उसकी वापसी एक नए स्वर्ग और नई पृथ्वी का आरम्भ करेगी।
यह विचार कि स्वर्ग पृथ्वी पर आ सकता है—कि एक दिन “नया यरूशलेम स्वर्ग से परमेश्वर के पास से” उतरेगा (प्रकाशितवाक्य 21:2)—यह विचार आधुनिक संसार के कई दृष्टिकोणों में, विशेषकर पश्चिमी संस्कृति में, अपूर्ण रूप से झलकता है। हमारी संस्कृति स्वाभाविक रूप से आत्मविश्वासी है, इसलिए यह थोड़ी सी और शिक्षा, थोड़े से और सामाजिक कल्याण और दूसरों के प्रति थोड़ी सी और संवेदनशीलता के जरिए इस संसार को सुधारने का प्रयास करती है। लेकिन मनुष्य द्वारा बनाई गई कोई भी योजना उस वास्तविक पुनर्स्थापना को नहीं ला सकती, जिसकी हमारे संसार को ज़रूरत है। मानवीय प्रयास चीज़ों को बेहतर बना सकते हैं, परन्तु उन्हें सिद्ध नहीं कर सकते। स्वर्ग तब तक पृथ्वी पर नहीं आएगा, जब तक मसीह स्वयं वापिस नहीं आता। सृष्टि इस समय पाप की पकड़ में जकड़ी हुई है, और अन्त में केवल परमेश्वर ही इसे पूरी तरह सुधार सकता है— और वह ऐसा अवश्य करेगा—जब उसकी प्रजा मेमने के सामने दण्डवत करेगी और उसकी स्तुति करेगी।
फिलहाल, आप और मैं एक परदेशी भूमि में निर्वासितों के समान जी रहे हैं। हम ऐसे संसार में रह रहे हैं, जो मसीह का विरोधी है, उसके वचन का विरोधी है और उस जीवन का विरोधी है जो उसकी आज्ञाकारिता में जीया जाता है। विश्वासियों के रूप में हमारे लिए यह प्रलोभन आता है कि हम भाग जाएँ और छिप जाएँ—एक छोटी-सी “पवित्र मण्डली” बनाकर संसार से खुद को अलग कर लें और उसकी चिन्ता न करें। लेकिन जैसा कि यिर्मयाह ने बेबीलोन में निर्वासित लोगों से कहा था कि वे उस नगर की भलाई की खोज करें जिसमें वे रह रहे हैं (यिर्मयाह 29:7), उसी प्रकार हमें भी उस संसार की भलाई की खोज करनी है, जिसमें हम रह रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि हम इस संसार में तो रहें, परन्तु इसके जैसे न बनें—ऐसा जीवन जीएँ और ऐसे वचन बोलें जो एक भिन्न स्थान की ओर इशारा करते हैं।
मसीह की—जो कि क्रूस पर मरा, मरे हुओं में से जी उठा, अब राज्य कर रहा है और एक दिन लौटकर आएगा—विजयी कहानी में आनन्दित होना ही हमें यह साहस देता है कि हम इस संसार से आगे देख सकें। उसकी वापसी की आशा और उसकी उपस्थिति में अनन्त जीवन की आशा ही वह उत्तम प्रेरणा है, जो हमें लगातार पवित्र जीवन जीने और उसके नाम में उत्साह के साथ सुसमाचार प्रचार के लिए प्रेरित करती है। अब विश्वास की दृष्टि से उसके लौटने की आशा करें—और फिर आज उठकर अपने आस-पास के लोगों की भलाई के लिए जीवन जीएँ।
1 कुरिन्थियों 15:50-58
◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: आमोस 4– 6; यूहन्ना 7:28-53