
“मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही परमेश्वर हूँ और दूसरा कोई और नहीं है।” यशायाह 45:22
हर दिन, जैसे ही भोर होता है, भारत में गंगा के किनारे पूजा करने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है और सूर्योदय का स्वागत करती है। कई लोग अपने प्रियजनों की अस्थियाँ पानी में प्रवाहित करते हैं, ताकि वे अपनी शाश्वत सुख-शान्ति प्राप्त कर सकें। भारत के करोड़ों हिन्दुओं की तरह ये पुरुष और महिलाएँ मानते हैं कि “भगवान” हर चीज़ में विद्यमान है।
हालाँकि हम लोग ऐसी पूजा के दृश्यों और स्वरों से बहुत दूर हैं, लेकिन एक अन्य भाव में हम इसके कहीं ज़्यादा क़रीब हैं, जिसे हम स्वीकार नहीं करना चाहते।
हमारी अपनी संस्कृति में देखें तो आप पाएँगे कि मूर्तिपूजा और उसकी सूक्ष्मताएँ अब भी उतनी ही प्रचलित हैं, जितनी पहले थीं। यह धारणा में पाई जाती है कि इसका कोई महत्त्व नहीं है कि आप क्या मानते हैं, क्योंकि दुनिया के सारे बड़े धर्म “मूल बातों पर सहमत हैं।” मसीहत के भ्रष्ट और विकृत रूपों की भरमार पाई जाती है, क्योंकि हम अपने अनुसार बनाए गए एक “ईश्वर” की पूजा करने में माहिर हैं—एक ऐसा ईश्वर जो संयोगवश हमारी इच्छाओं के अनुकूल होता है और हमारे निर्णयों से सहमत रहता है। इसी तरह, सतही प्रकार के ‘सर्वेश्वरवाद’ (Panentheism) की झलक हमें आलीशान स्पा और योगा कक्षाओं में मिल सकती है, क्योंकि हम अपने आप को और अपने शरीर को भी एक देवता मानने में बड़े कुशल हैं।
असल में, हमारे पास सैकड़ों प्रतिस्थापित देवता हैं—ऐसी मूर्तियाँ जो हमें स्वतन्त्रता का वादा करती हैं, लेकिन वास्तव में हमें तुच्छ और बन्धक बना देती हैं। यदि आप सेक्स की पूजा करते हैं, तो यह आपकी प्रेम करने या प्रेम प्राप्त करने की क्षमता को नष्ट कर देगा। शराब की पूजा करें, तो यह आपको जकड़ लेगी। पैसे की पूजा करें, तो यह आपको निगल जाएगा। अपने परिवार की पूजा करें और आप (या वे) अधूरी उम्मीदों के बोझ तले टूट जाएँगे। किसी भी प्रतिस्थापित देवता की पूजा करें और आप पाएँगे कि वह सन्तुष्टि नहीं दे सकता।
जब हम मूर्तिपूजा में धीरे-धीरे और गहराई से उलझते जाते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप बाइबल में हमारा विश्वास कम होता जाता है—उस बाइबल में जो परमेश्वर का अचूक वचन है। जब ऐसा होता है, तो यीशु नासरी के विशेष और अनन्य दावों की सीधी घोषणा के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता—कि वह त्रिएक परमेश्वरत्व का दूसरा व्यक्ति है, सृष्टिकर्ता है, पुनरुत्थित प्रभु है, स्वर्गारोहित राजा है, और—एक दिन—लौटने वाला मसीह है। इसलिए यह परमेश्वर की कृपा का कार्य है—भले ही एक विचलित कर देने वाला कार्य हो—कि वह अपने वचन में कहता है: मैं सब लोगों को, हर जगह, यह आज्ञा देता हूँ कि वे पश्चाताप करें, अपनी निरर्थक मूर्तियों से मुड़ें, और मेरी—सृष्टिकर्ता, पालनहार, शासक, पिता और न्यायी की—उपासना करें (प्रेरितों 17:30 देखें)।
आपके हृदय की उस निरन्तर इच्छा का इलाज क्या है, जो बार-बार उन मूर्तियों की ओर झुकती है जो प्रभु का अपमान करती हैं और उद्धार नहीं कर सकतीं? उत्तर बहुत सरल है: “हे पृथ्वी के दूर-दूर के देश के रहने वालो, तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही परमेश्वर हूँ और दूसरा कोई और नहीं है।” उन मूर्तियों की पहचान करें जिनकी उपासना करने की ओर आपका मन झुकता है—और फिर उन्हें उस सृष्टिकर्ता और सम्पूर्ण सृष्टि के पालनहार के सामने रखकर देखें। वह परमेश्वर है, वे नहीं हैं। वह उद्धार कर सकता है, वे नहीं कर सकते। फिर से उनसे मुड़ें, और उसकी ओर लौट आएँ।
यशायाह 45:18-25
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: आमोस 1–3; यूहन्ना 7:1-27 ◊