
“मेरा राज्य इस संसार का नहीं . . . तू कहता है कि मैं राजा हूँ। मैंने इसलिए जन्म लिया और इसलिए संसार में आया हूँ कि सत्य की गवाही दूँ। जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” यूहन्ना 18:36-37
आप यीशु के साथ क्या करेंगे? उस पहले गुड फ्राईडे की सुबह यहूदी धार्मिक अधिकारी यीशु को रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पिलातुस के पास ले गए, ताकि उसका मुकद्दमा जारी रखा जा सके। हम सुसमाचारों के विवरण में देख सकते हैं कि कैसे परमेश्वर ने इन घटनाओं को पूरी तरह से अपनी योजना के अनुसार नियोजित किया। यहूदी नेताओं का यीशु को क्रूस पर मरवाने का निर्णय दरअसल परमेश्वर की शाश्वत योजना को पूरा कर रहा था। इस दिव्य योजना में यीशु का पिलातुस के साथ संवाद भी शामिल था, और जब वे एक-दूसरे के सामने खड़े हुए, पिलातुस ने यीशु की पहचान और अधिकार के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल पूछे, जो अनन्त महत्त्व रखते थे, और हममें से हर एक को इसका उत्तर देना चाहिए। एक भजनकार के शब्दों पर विचार करें:
यीशु पिलातुस के महल में खड़ा है—
मित्रविहीन, त्यागा हुआ, सभी से धोखा खाया हुआ;
सुनो! इस अचानक हुई पुकार का क्या अर्थ है?
आप यीशु के साथ क्या करेंगे?
पिलातुस ने सोचा कि वह केवल एक बौद्धिक और राजनीतिक परीक्षा ले रहा था। लेकिन “यीशु कौन हैं?” यह सवाल हमेशा एक आत्मिक और पारलौकिक सवाल होता है। यीशु एक राजनीतिक राजा नहीं था, जैसा पिलातुस सोच रहा था; बल्कि वह तो स्वर्गिक राजा था। यीशु ने पिलातुस से कहा, मेरा राज्य इस संसार का है ही नहीं। मेरा राज्य तो मेरे लोगों के हृदयों में आत्मिक परिवर्तन लाने से सम्बन्धित है। पृथ्वी पर एक राजा के तौर पर जन्म लेने का मेरा उद्देश्य परमेश्वर के सत्य की गवाही देना है। लेकिन पिलातुस अपने अविश्वास में अंधा होकर पहले ही अपना निर्णय ले चुका था। निराश और उदासीन होकर वह इस मूलभूत सवाल से बचने की कोशिश कर रहा था, जिसका उत्तर हम सभी को देना चाहिए: “मैं यीशु के साथ क्या करूँगा?” लेकिन इस सवाल से बचने की कोशिश करते हुए पिलातुस ने अपना जवाब दे दिया। उसका उत्तर था: मैं अपने ऊपर यीशु के दावे को और अपने ऊपर उसके शासन को नकारता हूँ, और ऐसा करके मेरा उद्धार करने के उसके प्रस्ताव को भी ठुकराता हूँ।
आप यीशु के साथ क्या करेंगे?
उदासीन आप नहीं हो सकते;
एक दिन आपका दिल पूछेगा,
“वह मेरे साथ क्या करेगा?”[1]
उदासीन आप नहीं हो सकते। आप या तो उनके राज्य के अधीन जीवन जीएँगे, या फिर आप उसे नकार देंगे। इसलिए सुबह जब आप सुबह अपनी बाइबल पढ़कर बन्द करते हैं, तो यह सोचकर अपने दिन का आरम्भ न करें कि यह संसार, इसकी चिन्ताएँ और इसके अस्थायी शासक ही सब कुछ हैं और केवल यही मायने रखता है। इस सोच के साथ अपने दिन का आरम्भ न करें कि इस संसार में आपके जीवन में यीशु की कोई जगह या रुचि नहीं है। यीशु पिलातुस के सामने मित्रविहीन और त्यागा हुआ खड़ा था, ताकि आप उसके मित्र बनकर उनके शाश्वत राज्य में स्वागत किए जा सकें। उदासीनता का कोई विकल्प नहीं है—तो फिर हम इसे क्यों चाहेंगे?
यूहन्ना 18:28-40