
“भारी वचन जिसको हबक्कूक नबी ने दर्शन में पाया।” हबक्कूक 1:1
सच्चे भविष्यवक्ताओं का महत्त्व कभी इस बात में नहीं था कि वे कौन थे, बल्कि उस सन्देश में था जो वे सुनाते थे। हमारे लिए भी यही सच होना चाहिए।
उदाहरण के लिए, हबक्कूक को ही लें। उसकी जीवनी सम्बन्धी जानकारी लगभग न के बराबर है। हम उसके बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह केवल उस भविष्यवाणी की पुस्तक से मिलता है जो उसके नाम से जानी जाती है, और वह भी हमें बहुत कम जानकारी देती है। आपको हबक्कूक का उल्लेख पुराने नियम में कहीं और नहीं मिलेगा। हालाँकि, यह चुप्पी अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। हबक्कूक की पहचान उसके व्यक्तित्व में नहीं, बल्कि उसके बुलावे और उसके सन्देश में थी।
हमें यह दृष्टिकोण पूरी बाइबल में भविष्यवाणी से सम्बन्धित घटनाओं में मिलता है। कुछ भविष्यवक्ताओं के बारे में हमें अधिक जानकारी मिलती है, तो कुछ के बारे में बहुत कम। लेकिन जो कुछ भी हमें उनके बारे में बताया गया है, वह असाधारण या प्रभावशाली नहीं है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर द्वारा आमोस को बुलावा दिए जाने से पहले वह केवल “गाय–बैलों का चरवाहा, और गूलर के वृक्षों का छाँटने वाला था” (आमोस 7:14)। इसी तरह, जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से पूछा गया कि वह कौन है, तो उसने गवाही दी, मैं जंगल में पुकारने वाले की आवाज़ हूँ। मैं कुछ समय के लिए जलती और चमकती हुई जोत हूँ, लेकिन यीशु संसार की ज्योति हैं। मैं केवल मसीह की ओर इशारा करने वाली अंगुली हूँ; वह बढ़ता जाए और मैं घटता जाऊँ (यूहन्ना 1:23; 5:35; 3:30 देखें)।
हबक्कूक की पुस्तक के पहले पद में जिस शब्द का अनुवाद “भारी वचन” किया गया है, उसका अनुवाद कभी-कभी “बोझ” भी किया जाता है। यह बोझ क्या था? यह वही बोझ था जिसे भविष्यवक्ता ने परमेश्वर से मिली समझ के अनुसार कुछ परिस्थितियों को देखकर महसूस किया—ऐसी परिस्थितियों को जिन्हें दूसरे भी देख रहे थे, लेकिन समझ नहीं पा रहे थे। यह परमेश्वर की बुद्धि और योजनाओं को उन लोगों के सामने प्रस्तुत करने का बोझ भी था, जो उसे सुन रहे थे।
आज के समय में, जब लोग व्यक्तित्व और योग्यताओं पर अधिक ध्यान देते हैं, वहीं हमारा मुख्य ध्यान सुसमाचार प्रचार, शिक्षण, और साझा करने में इसके सन्देश पर होना चाहिए। हर प्रवचन, हर शिक्षण और हर सुसमाचार वार्तालाप घास की तरह मुरझा जाता है, लेकिन इसकी एकमात्र सच्ची कीमत तब सामने आती है जब परमेश्वर के अटल सत्य और विश्वसनीयता की जड़ें सुनने वाले के हृदय में जम जाती हैं। जैसा कि डेविड वेल्स लिखते हैं, “प्रचार—और परमेश्वर के वचन में से परमेश्वर के किसी भी सत्य का संवाद—कोई साधारण बातचीत या दिलचस्प विचारों की चर्चा नहीं है. . . नहीं! यह परमेश्वर की वाणी है! जब प्रचारक का मन पवित्रशास्त्र के पदों पर केन्द्रित होता है और उसका हृदय परमेश्वर की उपस्थिति में होता है, तब उसके मुख से निकलने वाले शब्दों में से स्वयं परमेश्वर बोल रहा होता है।”[1]
चाहे हमें प्रचार करने, सिखाने, या अपने पड़ोसी के साथ परमेश्वर का वचन साझा करने के लिए बुलाया गया हो, इस सन्देश में हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा है: हमारे भीतर सच्ची नम्रता होनी चाहिए, जो हमारे जीवन में परमेश्वर के जबरदस्त बुलावे की समझ में से उत्पन्न होती है। साथ ही, हमें इसमें उत्साह भी होना चाहिए, क्योंकि इस जीवन में इससे अधिक मूल्यवान कार्य और क्या हो सकता है? यह सन्देश हमसे बहुत बड़ा है, और लोगों के जीवन में इसके प्रभाव अनन्त काल तक बने रहेंगे। आज, सन्देशवाहक की अपनी योग्यताओं और क्षमताओं की चिन्ता न करें; बल्कि इस बात की चिन्ता करें कि परमेश्वर का सन्देश सही तरीके से साझा हो, चाहे वह किसी भी रूप में हो और किसी भी व्यक्ति के साथ हो।
रोमियों 10:11-17 पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: होशे 1–4; मत्ती 18:1-20 ◊
[1] द करेज टू बी प्रोटेस्टेण्ट: ट्रुथ-लवर्स, मार्केटर्स ऐण्ड इमर्जेण्ट्स इन द पोस्टमोडर्न वर्ल्ड (आई.वी.पी., 2008), पृ. 230.