“मतूशेलह के जन्म के पश्चात हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा . . . हनोक परमेश्वर के साथ-साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया।” उत्पत्ति 5:22, 24
सच्चा विश्वास कोई क्षणिक चमक नहीं है। यह एक निर्णायक कार्य भी है और एक स्थायी मनोवृत्ति भी।
हमें बताया गया है कि हनोक “परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा”—परन्तु यह आरम्भ से ऐसा नहीं था। उत्पत्ति 5 से यह स्पष्ट होता है कि हनोक के जीवन में ऐसा समय था, जब विश्वास का आरम्भ हुआ। वास्तव में, हमें बताया गया है कि “मतूशेलह के जन्म के पश्चात हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा।” सम्भव है कि अन्य जीवन-परिवर्तनकारी अनुभवों की भाँति, पिता बनने की ज़िम्मेदारी और चुनौतियों ने शीघ्र ही हनोक को उसकी अपनी सीमाएँ दिखा दी हों। जो भी कारण रहा हो, ऐसा प्रतीत होता है कि हनोक के जीवन में एक ऐसा क्षण आया जब उसने अपने ऊपर विश्वास करना और अपने बल पर निर्भर रहना छोड़ दिया, और परमेश्वर पर विश्वास करना और उस पर निर्भर रहना आरम्भ कर दिया।
परन्तु हनोक का विश्वास केवल सोच-समझकर किया गया चुनाव ही नहीं था, बल्कि वह एक स्थायी सम्बन्ध भी था। विश्वास एक निर्णायक कार्य के रूप में आरम्भ होता है और उसी प्रकार निरन्तर बना रहता है। हनोक “परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा” और फिर “वह लोप हो गया।” और उसके इस स्थायी विश्वास के परिणामस्वरूप, परमेश्वर ने उसे उठा लिया। उसने मृत्यु का स्वाद नहीं चखा।
हनोक के जीवन के अन्त का यह लगभग अद्वितीय अनुभव उस महिमामय देह की ओर संकेत करता है, जिसे हर विश्वासी प्रभु यीशु मसीह की वापसी पर प्राप्त करेगा। पौलुस स्पष्ट करता है कि “तुरही फूँकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएँगे, और हम बदल जाएँगे। क्योंकि अवश्य है कि यह नाशवान देह अविनाश को पहन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहन ले” (1 कुरिन्थियों 15:52–53)। जब हम परमेश्वर के साथ चलते हैं—इस सच्चाई को स्मरण रखते हुए कि हमारे जीवन का हर आयाम उसकी प्रभुता और योजना के अधीन है—तो हमारे अनन्त भविष्य में एकत्रित किया जाना हमारे शरीर और हमारे स्थान को तो बदलेगा, परन्तु हमारी संगति को नहीं।
हनोक का यह स्थायी सम्बन्ध परमेश्वर के साथ, अन्ततः उसकी उपस्थिति के अनन्त आनन्द में परिणत हुआ। यदि हम अनन्त काल को अपने परमेश्वर की आराधना में बिताने वाले हैं, तो पृथ्वी पर उसकी आराधना करके हम ऐसे काम का आरम्भ कर रहे हैं, जिसका कभी अन्त नहीं होगा। यदि हम अनन्तकाल उसकी संगति और स्तुति में बिताएँगे, तो यहाँ का हमारा अनुभव वहाँ की तैयारी है। अतः आज उसके साथ चलें। उसकी उपस्थिति के प्रति सचेत रहें। उसके अनुग्रह और सामर्थ्य पर निर्भर रहें। उससे क्षमा माँगने में तत्पर रहें। उसकी अगुवाई को पहचानने में सतर्क रहें। आज उसके साथ चलें—जब तक कि आज ही वह दिन न बन जाए जब आप उसे आमने-सामने देखें।
1 थिस्सलुनीकियों 4:13-18
◊ पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: एस्तेर 3–5; लूका 12:32-59