
“परन्तु यदि तू चढ़ाई करते डरता हो, तो अपने सेवक फूरा को संग लेकर छावनी के पास जाकर सुन, कि वे क्या कह रहे हैं; उसके बाद तुझे उस छावनी पर चढ़ाई करने का साहस होगा।” न्यायियों 7:10-11
डर में पीछे हटना हमेशा आसान होता है, जबकि विश्वास में आगे बढ़ना कठिन। पीछे हटना आसान तो है, लेकिन कभी भी बेहतर नहीं है।
गिदोन डर के बारे में और उसकी वजह से होने वाली हिचकिचाहट के बारे में बहुत कुछ जानता था। जब परमेश्वर के दूत ने उसे इस्राएल का नेतृत्व करने के लिए बुलाया, तब उसने संकोच किया (न्यायियों 6:13, 15)। जब इस्राएल के शत्रु उससे युद्ध करने के लिए इकट्ठा हुए, तब भी उसने संकोच किया (पद 36-40)। और ऐसा प्रतीत होता है कि युद्ध से ठीक पहले, जिसमें परमेश्वर ने उसे विजय का आश्वासन दिया था, वह फिर से संकोच कर रहा था (7:9-10)। इसी डर और संकोच के बीच परमेश्वर ने उससे बात की। ध्यान दें कि गिदोन के डर को देखकर भी परमेश्वर अनुग्रह और धैर्य से उससे बात करता है, “परन्तु यदि तू चढ़ाई करते डरता हो . . .” और उसे अपने सेवक के साथ शत्रु शिविर में जाने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह गिदोन के भय को ध्यानपूर्वक सम्बोधित करने का एक संवेदनशील तरीका है। परमेश्वर ने यह स्वीकार किया कि मानवीय दृष्टिकोण से गिदोन के पास डरने के ठोस कारण थे! वह एक ऐसे शत्रु के खिलाफ युद्ध में जा रहा था, जिसकी सेना उसके सैनिकों की तुलना में हजारों में अधिक थी। लेकिन परमेश्वर ने उसे उसके डर के लिए डाँटा नहीं, बल्कि उसे आत्मविश्वास से भरने का कारण दिया।
गिदोन की तरह हमें भी प्रभु के ऐसे ही दयालु शब्दों की जरूरत है। हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम अपनी सारी चिन्ताएँ उस पर डाल सकते हैं (1 पतरस 5:7)। हम अपने सारे बोझ और भय उसके चरणों में रख सकते हैं। हमें यह अनुमति दी गई है कि हम उसके पास जाकर कहें कि हमें नहीं पता कि हमें क्या करना चाहिए। और उसका उत्तर हमेशा अनुग्रह और करुणा से भरा होता है।
जो बात इस कहानी को और भी सुन्दर बनाती है, वह है गिदोन की परमेश्वर की कोमल प्रेरणा के प्रति प्रतिक्रिया। जब वह अपने सेवक के साथ छिपकर शत्रु शिविर में जाता है, तो वह दो सैनिकों को एक स्वप्न के बारे में चर्चा करते हुए सुनता है, जिसमें एक सैनिक इसकी व्याख्या इस प्रकार करता है कि वे “गिदोन की तलवार” से हार जाएँगे क्योंकि “उसी के हाथ में परमेश्वर ने मिद्यान को सारी छावनी समेत कर दिया है” (न्यायियों 7:14)। जब गिदोन यह सुनता है और महसूस करता है कि परमेश्वर ने सचमुच उसके लिए पहले से ही वह कार्य कर दिया है जो वह स्वयं कभी नहीं कर सकता था, तो वह क्या करता है? “उसने आराधना की” (पद 15)। इस प्रतिक्रिया में बहुत गहराई है। असम्भव परिस्थितियों का सामना करते हुए, लेकिन परमेश्वर की प्रतिज्ञा में आश्वस्त होकर, यह भयभीत, कमजोर और अप्रत्याशित अगुवा परमेश्वर की स्तुति में अपना हृदय उण्डेल देता है और फिर परमेश्वर से मिले साहस से अपनी सेना को एकत्र करता है। उसकी निडरता एक गुप्त, निजी क्षण से आई थी, जो उसने परमेश्वर के साथ बिताया था।
यह महत्त्वपूर्ण है कि हम उस अन्तर को समझें जो मनुष्यों द्वारा संचालित योजनाओं और आत्मा से भरी वास्तविक निडरता के बीच है। मानवीय योजनाएँ केवल एक मानवीय प्रयास होती हैं और जल्दी ही बिखर सकती हैं; लेकिन आत्मा से मिलने वाली निडरता केवल तब पाई जाती है, जब हम परमेश्वर के सामने दीन होते हैं, अपनी अपर्याप्तता को स्वीकार करते हैं, और उसके सामर्थ्य को याद रखते हैं। यही वह ठोस स्थान है जिस पर हम खड़े हो सकते हैं। डर का समाधान स्वयं को महान मान लेना नहीं है, जैसा कि बहुत से लोग दावा करते हैं। इसका समाधान यह है कि हम परमेश्वर को महान मानें और उसकी शक्ति पर विश्वास करें, जो हमें एक पवित्र और विनम्र निडरता प्रदान कर सकता है।
आप इस समय किससे डर रहे हैं? किस बात को लेकर आप संकोच कर रहे हैं, जबकि परमेश्वर आपको आज्ञाकारिता में आगे बढ़ने के लिए बुला रहा है? अपने भय को परमेश्वर के पास लाएँ। उससे प्रार्थना करें कि वह आपको वह सामर्थ्य दिखाए जो आप में नहीं है। फिर उस पर भरोसा करें, उसकी आराधना करें, और उसकी आज्ञा का पालन करें।
यहोशू 1:1-11
पूरे वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल पढ़ने के लिए: यहेजकेल 37–39; यूहन्ना 18:1-18 ◊