
“हे यहोवा, न तो मेरा मन गर्व से और न मेरी दृष्टि घमण्ड से भरी है; और जो बातें बड़ी और मेरे लिए अधिक कठिन हैं, उनसे मैं काम नहीं रखता। निश्चय मैं ने अपने मन को शान्त और चुप कर दिया है, जैसा दूध छुड़ाया हुआ लड़का अपनी माँ की गोद में रहता है, वैसे ही दूध छुड़ाए हुए लड़के के समान मेरा मन भी रहता है।” भजन 131:1-2
एक बच्चे से उसकी माँ का दूध छुड़ाना उसके लिए पीड़ादायी हो सकता है, लेकिन यह स्वस्थ विकास और परिपक्वता के लिए आवश्यक होता है। आज के पश्चिमी समाज में यह प्रक्रिया बहुत छोटी उम्र में उसका व्यक्तित्व पूरी तरह से विकसित होने से पहले ही हो जाती है। जब यह भजन लिखा गया था, तब बच्चे से उसकी माँ का दूध छुड़ाने की प्रक्रिया आमतौर पर तीन वर्ष की उम्र के आसपास होती थी।
इसलिए बच्चे के लिए यह एक उलझन भरा संघर्ष हो सकता है, क्योंकि वह कुछ ऐसा छोड़ने की कोशिश कर रहा होता है, जिससे उसे पहले आनन्द मिलता था। लेकिन एक बार जब बच्चा दूध छोड़ देता है, तो वह “शान्त और स्थिर” हो जाता है; अब वह यह समझ जाता है कि उसकी जरूरत अब भी पूरी होगी, और अब वह अपनी माँ के साथ समय का आनन्द ले सकता है, और अब ऐसा वह उससे कुछ पाने के लिए नहीं करेगा, बल्कि इसलिए क्योंकि वह उसकी माँ है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि दूध छुड़ाया हुआ बच्चा यह भी सीख लेता है कि उसकी माँ जानती है कि उसके लिए सबसे अच्छा क्या है, भले ही उससे एक आरामदायक चीज़ को ले लिया गया हो और यह फैसला उसके तीन साल के नजरिए से उलझन भरा लग रहा हो।
दूध छुड़ाए हुए बच्चे के समान हमें भी आध्यात्मिक बच्चों के रूप में यह समझ लेना चाहिए कि हम हमेशा अपने लिए यह फैसला नहीं कर पाते कि हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है। हमें भरोसा रखना चाहिए कि हमारा स्वर्गिक पिता बेहतर जानता है। फिर भी, बहुत बार हमारे गर्वीले हृदय हमें परमेश्वर के रहस्यमय तरीके पर सवाल उठाने के लिए उकसाते हैं। हम जानना चाहते हैं कि हम क्यों दर्द, परेशानी या हानि का सामना कर रहे हैं, लेकिन हम यह पहचान नहीं पाते कि हमारे सवाल हमारे अहंकार को प्रकट कर सकते हैं।
सवाल अवश्य होंगे; ये हमारी यात्रा का हिस्सा होते हैं। लेकिन सच्चा सन्तोष तब मिलता है, जब हम अपने सवालों को संयमित करना सीख लेते हैं। सन्तोष कहता है, “भले ही मैं समझ न सकूँ, फिर भी मैं भरोसा करूँगा।” हमें इसका ध्यान रखना चाहिए कि अपने अहंकार में हम यह न माँगने लग जाएँ कि कुम्हार हमें बताए कि उसने बर्तन को इस तरह से क्यों बनाया (यशायाह 45:9)। परमेश्वर की सिद्ध इच्छा और तरीके रहस्यमय होते हैं, लेकिन वे हमेशा अच्छे होते हैं, क्योंकि वह हमारा पिता है।
प्रभु की सहायता से, हम खुद को यह सिखा सकते हैं कि हम उसके प्रावधान पर ध्यान केन्द्रित करें और खुद को याद दिलाएँ कि हमारी परिस्थितियाँ अस्थाई हैं, कि हमारा पिता जानता है कि वह इनमें क्या कर रहा है, और यह भी कि ये परिस्थितियाँ हमारे आनन्द और महिमा को हमसे छीन नहीं सकतीं, जो अन्ततः मसीह में हमारे लिए हैं। इस प्रकार, हमारी आत्मा शान्त हो सकती है।
मसीही जीवन में, सन्तोष अक्सर भ्रम और असुविधा के अनुभव के माध्यम से पाया जाता है, जब हम यह कहना सीख जाते हैं, “मेरा पिता यहाँ प्रभारी है और मेरे अच्छे के लिए काम कर रहा है क्योंकि मैं उसकी सन्तान हूँ। मुझे समझने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैं उस पर भरोसा कर सकता हूँ। मेरे पास वह है, और वह मेरे लिए पर्याप्त है। इस तूफान में भी मेरी आत्मा शान्त है।” यह कितनी अद्भुत सच्चाई है जिसे आज कहा जा सकता है!
भजन 34