14 अप्रैल : कायरतापूर्ण समझौता

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14 अप्रैल : कायरतापूर्ण समझौता
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“जब प्रधान याजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, ‘उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!’ पिलातुस ने उनसे कहा, ‘तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ, क्योंकि मैं उसमें कोई दोष नहीं पाता।’ यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, ‘हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है, क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्‍वर का पुत्र बनाया।’ जब पिलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया।” यूहन्ना 19:6-8

आप किसकी प्रशंसा के लिए जीएँगे?

जब पिलातुस के सामने मसीह पर मुकद्दमा चलाया गया, तो रोमी राज्यपाल ने बार-बार उसकी निर्दोषता की घोषणा तो की, किन्तु इस घोषणा के बावजूद उसने यीशु के खिलाफ भयानक कृत्य किए।

पिलातुस ने कहा, “मैं इसमें कोई दोष नहीं पाता”—और फिर यीशु को बर्बर तरीके से कोड़े मारे जाने के लिए सौंप दिया, एक ऐसी मार जो इतनी भयंकर होती थी कि कभी-कभी इससे नसें, धमनियाँ और आन्तरिक अंग बाहर आ जाते थे।

पिलातुस ने कहा, “मैं इसमें कोई दोष नहीं पाता”—और फिर सैनिकों को अनुमति दी कि वे यीशु का मजाक उड़ाने के लिए उसे एक दिखावटी राजगद्दी पर बैठाएँ, उसके सिर पर काँटों का मुकुट रखें, उसे एक राजा जैसे कपड़े पहनाएँ और उसका उपहास करते हुए उसके आगे “दण्डवत” करें।

पिलातुस ने कहा, “मैं इसमें कोई दोष नहीं पाता”—लेकिन क्या उसने यीशु को रिहा किया? नहीं, उसने यीशु को मृत्युदण्ड देने वाले एक निर्दयी दस्ते के हवाले कर दिया।

पिलातुस सम्भवतः मसीह से मिलने वाला ऐसा व्यक्ति था, जो सबसे अधिक पीड़ित था। वह एक ऐसा व्यक्ति था, जिसके पास बड़ी ताकत तो थी, लेकिन जो अपनी कायलता पर खड़ा होने का साहस नहीं रखता था। वह एक ऐसा व्यक्ति था, जिसने बड़ी सफलता तो हासिल की थी, लेकिन जिसने अपने पद की शोभा में समझौता किया था और खुद को एक कायर के रूप में दिखाया था। वह एक ऐसा राज्यपाल था, जो अपनी खुद की कमजोरियों के अधीन था।

हम इस बारे में निष्क्रिय या उदासीन नहीं हो सकते कि मसीह हमारे लिए कौन है। क्या वह उद्धारकर्ता हैं या क्या वह कोई नहीं हैं? पिलातुस के समान यह फैसला लेने से बचने का अर्थ है कि हम मसीह को पूरी तरह से अनदेखा कर रहे हैं।

पिलातुस हमारे लिए एक चुनौती के रूप में खड़ा है। उसका आचरण हमें यह पूछने के लिए मजबूर करता है: किन परिस्थितियों में मैं, पिलातुस की तरह, जानता हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए, फिर भी मैं डरता हूँ कि यदि मैंने ऐसा किया तो लोग क्या कहेंगे? क्या मेरे शब्द या आचरण उन लोगों की अपेक्षाओं और प्रतिक्रियाओं, या सम्पत्ति, स्थिति, या पदोन्नति के विचारों से अधिक प्रभावित हैं, बजाय इसके कि वे मसीह के आदेशों से प्रभावित हों?

आइए हम मसीह के बारे में अपने दृष्टिकोण पर समझौता न करें। यदि हम अपने साथियों, पड़ोसियों या परिवार की राय की चिन्ता में बहुत ज्यादा खो जाते हैं, तो हो सकता है कि हम पाएँ कि हम माफी, शान्ति, स्वर्ग और स्वयं मसीह को त्याग कर एक आसान जीवन चुन रहे हैं। इसके बजाय, आइए हम साहस दिखाएँ।

फिर से मसीह को देखें: पीटा गया, उपहासित हुआ, और आपके लिए प्रेम के कारण मारा गया। फिर उन लोगों को देखें, जो शायद विरोध के साथ या शायद शालीनता के साथ उसके सत्य का मजाक उड़ाते हैं। आप किसे नाराज करना चाहेंगे? आप किसकी “शाबाशी” को सुनना चाहेंगे?

मसीह हमें अपने पास बुला रहा है, ताकि हम जाएँ और उसके लिए जीएँ। क्या आप आएँगे, और क्या आप जाएँगे?

यूहन्ना 19:1-16

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