21 जनवरी : किसी अन्य देश के नागरिक

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21 जनवरी : किसी अन्य देश के नागरिक
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“क्योंकि बहुत से ऐसी चाल चलते हैं, जिनकी चर्चा मैंने तुम से बार-बार की है, और अब भी रो रोकर कहता हूँ कि वे अपनी चाल–चलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं। उनका अन्त विनाश है, उनका ईश्वर पेट है, वे अपनी लज्जा की बातों पर घमण्ड करते हैं और पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं। पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की बाट जोह रहे हैं। वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिसके द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन–हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा।  फिलिप्पियों 3:18-21

“हम यहाँ के नहीं हैं।” पहली सदी के यूनानी शहर फिलिप्पी के निवासियों ने भी, यहाँ तक कि वहाँ पैदा हुए लोगों ने भी यही कहा होगा, क्योंकि वे रोमी कानून के अनुसार रहते थे, रोमी वस्त्र पहनते थे और अपने दस्तावेज प्राचीन रोमी भाषा में लिखते थे। वे रोमी नागरिक थे। वह पूरी जगह रोम के जैसी दिखती थी किन्तु वह रोम था नहीं। फिलिप्पी के नागरिक यूनान में थे परन्तु रोम के नागरिक के रूप में रह रहे थे।

पौलुस ने उनसे कहा कि मसीही होना ठीक ऐसा ही है। हम मसीही राजधानी से दूर रहते हुए भी मसीही जीवन जी रहे हैं। आपको यह जानकर राहत मिलेगी कि वाशिंगटन डीसी या लन्दन नहीं है! वास्तविक “सदन की सीढ़ियाँ” इससे कहीं अधिक ऊँची और कहीं अधिक भव्य हैं। हमारी नागरिकता स्वर्ग की है और जब हम यहाँ पर परदेशी होकर रहते हैं, ऐसे लोगों के रूप में जो यहाँ के नहीं हैं, तो हम अपने आस-पास के संसार में परिवर्तन लेकर आएँगे।

मसीहियों के रूप में हमें प्रतिदिन यह महान अवसर मिलता है कि हम एक और दिन अलग दिखाई दें, अर्थात वैसे जीएँ जैसे हम वास्तव में हैं, अर्थात स्वर्ग के नागरिक, ऐसे लोग जो यहाँ के नहीं हैं। हम लोगों को हमारे बारे में ऐसे कहते हुए पाएँ, “अरे, मैं तुम्हारे जीवन जीने के तरीके और बात करने के तरीके से बता सकता हूँ कि तुममें कुछ अलग है।” इसका अर्थ यह है कि जब आप अपने जीवन के बारे में सोचते हैं, तो आपको अपने आप से कुछ प्रश्न पूछने की आवश्यकता है, जैसे कि, मेरी भक्ति का उद्देश्य क्या है, वह कौन सी बात है जो मुझे प्रेरित करती है और मेरे अस्तित्व को निर्मित करती है? क्या यह मेरा रूप है? क्या यह मेरा पद है? क्या यह मेरी इच्छाएँ और खुशियाँ है? मैं किस लिए जी रहा हूँ?

बाइबल चेतावनी देती है कि यदि हम “पाप में थोड़े दिन के सुख” के लिए जीते हैं (इब्रानियों 11:25), तो अन्ततः वे हमें खा जाएँगे और हमारे जीवन का अन्त कर देंगे। इसके विपरीत हमें भविष्य की महिमा की आशा में जीना चाहिए। वह समय आ रहा है, जब हमारा रूपान्तर होगा; हमारे पास “उसकी महिमामय देह के समान” नए शरीर होंगे। हमारे स्वर्गिक शरीर पाप, स्वार्थ-पूर्ण अभिलाषाओं के कारण या शक्ति के क्षीण होने के द्वारा फिर दुर्बल नहीं होंगे। हम एक दिन घर पहुँच जाएँगे, और यह बहुत अद्‌भुत होने वाला है!

यदि लोगों को आपके जीवन से ऐसा लगता है और आपकी बातचीत से पता चलता है कि आपके पास स्वर्ग की नागरिकता है, कि आप एक जीवित परमेश्वर की सेवा करते हैं, और आप अपने घर जाने की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं जहाँ आपका जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा, तो आज नहीं तो कल उनमें से कुछ लोग आप से अवश्य पूछेंगे कि आप उन्हें “अपनी आशा का कारण” बताएँ (1 पतरस 3:15)।

इसलिए इस बात को स्मरण रखें कि आप कहाँ से हैं। परमेश्वर की अधीनता में सुसमाचार का प्रभाव सीधे-सीधे मसीह के समान जीने की आपकी इच्छा से सम्बन्ध रखता है। अपनी स्वर्गिक नागरिकता के कौतूहल से भावुक और करुणामय होते रहें, जब आप उन लोगों के बीच चलते-फिरते हैं जो “क्रूस के बैरी” हैं (फिलिप्पियों 3:18)। यह निश्चित है कि मसीह वापस आएगा, और जब वह आएगा तो वह दिन आ जाएगा जब आप अपने निवासस्थान पहुँचेंगे। यदि आज के दिन ऐसा नहीं होता है, तो आज फिर आपके लिए अलग दिखने का एक अवसर उपलब्ध है। आप उस अवसर का लाभ किस प्रकार उठाने वाले हैं?

     1 पतरस 2:9-17

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